कहानियों और कविताओं की किताब में एक अच्छी बात ये है, कि किसी भी पन्ने से पढ़ जा सकता है, किसी भी क्रम से। इस का शीर्षक अच्छा लगा, चलो, ये पहले पढ़ लो। ये वाली बहुत लंबी है? चलो बाद में पढ़ते हैं।
मालती जी की सभी कहानियाँ मन को गुदगुदाती भी हैं, और स्त्री मन को गरम फ़अहे की तरह आराम भी देती हैं।
'वह भला सा आदमी' मेरी इस संग्रह में मेरी प्रिय रचना है।
' अब कैन गुणन ते रिझाऊँ पिया' और इस तरह कि कुछ अन्य कहानियाँ धीमे से बताती हैं कि स्त्री के शोषण की प्रक्रिया बदली है, क्रिया नहीं।
मात्र 80 पन्नों की पुस्तक है - रुचिकर और सरस। एक दोपहर में पढ़ कर पूरी किटी पार्टी में इसकी discussion की जा सकती है।
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