Thursday, June 23, 2016

Tu prabh Data... daan matt poora...

Every single time, when my heart is unsteady... these are the words I go back to..

Main kya maangoon.... kuchh phir na reha.. har deeje naam pyaari jio....

मैं क्या माँगूँ, कुछ फेर न रहा, हर दीजे नाम, प्यारी जीओ !

https://www.youtube.com/watch?v=TbGqkRc8Ubw

After dad's passing.. I went back to this one a lot...

 

The BEST Dachi Valeya Mod Muhaar Ve

Dachi Waliya - Sukhwinder-The Perfect Husband by Priya Singh Paul- A Punjabi English Indian Film - YouTube

When Sukhwinder Singh sings Dachi Valeya Mod Muhar ve, you sit down and listen... 
 
And Abida Parveeen does it well too: 
 

Koi Deewana kehta hai..

Tuesday, June 14, 2016

Book Review - Dastakhat aur anya kahaaniyaan by Jyoti Kumari / पुस्तक समीक्षा : दस्तखत और अन्य कहानियां - ज्योति कुमारी



साहित्य में, कविता के बाद मुझे कहानी की विधा ही सब से अच्छी लगती है. इसी लिए, जब कोई अच्छी किताब हाथ में आये - तो उसे औरों से सांझा करने का मन करता ही है.

एक बात मैंने बड़े सालों के बाद समझी है. जब कोई औरत लिखने  के लिए कलम उठाती है, तो वो चाहे या ना चाहे, औरत होने का दर्द उस कलम में उतर ही आता है.

ये कहानियां रुकने पर मजबूर करती हैं. किताब रख कर सोचना पड़ता है.

 एक ३० साल की अनब्याही लड़की है - जो अपने नानाजी की परवरिश और अपने माँ बाप की अपेक्षाएं, दोनों नावों में एक साथ सवारी करना चाहती हैं. मन में बात आती है, 'अगर वो लड़की न  होती, तो ये नाँवें भी दो नहीं, एक ही होती.'

और फिर एक लड़की और आती है - जो अपने पति से बचती है, तो मामा के शिकार से निकलने का समय आ जाता है. मामा से भाग कर नौकरी करना शुरू करती  है, तो दफ्तर वाले उसके अकेले होने को, उसका सुलभ्य होना समझ लेते हैं.  कहानी इस लिए नहीं परेशान करती , कि कहानी है. इस लिए परेशान करती है, कि सिर्फ कहानी नहीं है. सच भी है.

एक लड़की और है, दादी से पुछती हुई, "पर समझौता हमेशा औरत ही क्यों करे?" इस सवाल पर मुस्कुरा कर किताब बंद करनी पड़ती है. सवाल ही गलत है शायद - समझौता तो शायद दोनों को ही करना पड़ता है. पर जो बातें समझाने की नहीं, वो कोई कैसे समझाए?

बड़े दिन बाद एक कहानी संग्रह, जो वाकई बांधता है.

प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
 

Monday, June 13, 2016

The Little Prince in Hindi - Chapter 1

जब मैं ६ साल का था, मैंने एक किताब में एक बहुत ही रोमांचक तस्वीर देखी।  एक बड़ा सा सांप, अपने शिकार को निगल रहा था. किताब में लिखा था की ये सांप अपने शिकार को पूरा ही निगल जाता है, चबाता भी नहीं. और फिर, पूरे ६ महीने तक  रहता है, और उसका शिकार धीरे धीरे पचता रहता है.
मैंने इसके बारे में बहुत सोचा, और फिर, अपना काम ख़त्म करने के बाद, मैंने एक तस्वीर बनायीं. तस्वीर में वाही बड़ा सांप एक पूरा हाथी निगल गया  था,और हाथी साफ़ साफ़ उसके पेट में नज़र भी आता था. 
फिर मैंने वो तस्वीर कुछ बड़े लोगों को दिखाई और  उनसे पूछा की क्या ये तस्वीर डरावनी है?
मेरी बात सुन कर वो हंसने लगे. "भला टोपी की तस्वीर से भी कोई डरता है? "
पर वह टोपी की तस्वीर ही नहीं थी! उफ़! बड़े लोगों को तो कुछ भी समझ नहीं आता! उन्हें सब कुछ आसान कर के दिखाना और समझाना पड़ता है. इस लिए, उनकी बुद्धि के मुताबिक़, मैंने एक तस्वीर और बनायीं. इस बार, सांप के पेट के अंदर हाथी साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था. 
पर बड़े लोगों से तो किसी समझदारी की उम्मीद करना ही बेकार है! तस्वीर तो उन्हें फिर भी समझ नहीं आई, उलटे वे मुझे समझाने लगे कि मुझे ये तस्वीरें बनाना छोड़ कर , पढाई लिखाई में ध्यान देना चाहिए. 
और इस तरह , ६ साल की उम्र में, एक महान चित्रकार का करियर समाप्त हो गया. मैं जान गया की बड़े लोगों को कुछ भी समझ आने से रहा , और भला बच्चे कितनी देर तक बैठ कर इन्हे छोटी छोटी बातें समझा सकते हैं?!

और फिर मैं एक पायलट बन गया. उस से मैंने बहुत कुछ सीखा. जैसे कि , मैं आसमान से देख कर बता सकता हूँ, की ये चीन है या अमरीका।  अगर कोई पायलट रात को खो जाए, तो ऐसी जानकारी उस के बहुत काम आ सकती है!

इतने सालों में, मैं बहुत सारे बड़े लोगों से मिला हूँ, जो हमेशा काम की बात करना चाहते हैं. मैं उनके साथ रहा भी हूँ, और उन्हें बहुत पास से जाना भी है. लेकिन सच मानिए, इस से मेरी उनके बारे में राय बिलकुल नहीं बदली। बड़े लोग कुछ भी नहीं समझ पाते!

अगर कहीं मुझे कोई ऐसा इंसान मिल भी जाता है, जो थोड़ा सा भी समझदार मालूम पड़ता है, तो मैं उसे अपनी पहली तस्वीर दिखता हूँ,और पूछता हूँ, कि  ये क्या है?. हमेशा, हर बार, जवाब वही होता है - यह एक टोपी की तस्वीर है. 
 बस,ये सुनने के बाद मैं  उस से कोई भी महत्त्वपूर्ण बात नहीं करता - ना तारों की, ना बड़े बड़े ,साँपों की।  फिर मैं उस की समझ के मुताबिक नीचे उतर आता हूँ  और वो बातें करता हूँ जो वह समझ सके - जैसे कि खेल, राजनीति, अर्थशास्त्र। और वह इंसान बड़ा खुश नज़र आता है, कि उसे बड़ा समझदार इंसान मिला है. 

This translation is being done specially for the visually challenged - for the online audio library.

It can be freely shared, with credit.



 

Wednesday, June 08, 2016

Next time, when you want to shame someone for a dark episode in their lives...

सब के होते हैं 
 कुछ पन्ने स्याह, कुछ सलेटी , कुछ उजले 
कुछ सुर्ख, कुछ हरियाले
यकसां कहाँ होती है 
ज़िन्दगी की किताब  .

Everyone has
a few dark pages,
some grey
some soaked in bright white light
some pink
and some all green
The book of life
is not monochromatic.
 

Tuesday, June 07, 2016

Dear Diary...

३ घर, ३ बच्चे, ३ डायरी....

3 houses, 3 children, 3 diaries...

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 Dear Diary 

आज हमारे घर में लड़ाई हुई. बड़ा मज़ा आया. कितने सालों में, इस घर में लड़ाई ही नहीं हुई! मम्मी जो कहती है, पापा मान जाते हैं. पापा जो कहते हैं, मम्मी मान जाती है. जब नहीं मानते तो उन में से एक उठ के चला जाता है.

आज तो पापा मम्मी तू तू मैं मैं! पूछो ही मत!

अच्छा, बाकी बातें कल.


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Dear Diary

My parents fought today. Again.
All this cacophony really drives me nuts. Why can't they be quiet for just ONE day? In this house, either they are quiet or they are fighting. I don't know what normal talking feels like!

Any day, ANY DAY AT ALL - my birthday, their birthday, Diwali, Annual Day.. there is always a fight. And God save us if Dadi or nani is here. Then they fight even more bitterly. If dadi is here, papa fights more because dadi keeps telling him all the wrong things mom has done. If nani is here, papa fights more because he hates having nani over.

I don't get it. I just don't get it. I hate my life!

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Dear Diary

हमारे घर में आज लड़ाई नहीं हुई. कितनी अच्छी बात है! आज मेरा रिजल्ट आया था. मैं कक्षा में अव्वल आई हूँ न... तो पापा और मम्मी दोनों बड़े खुश थे. पापा ने हमें फ्रॉक दिलाई और मम्मी ने चॉकलेट ले के दी.

दोनों ने एक दुसरे को ताने भी नहीं मारे. मुझे तो यकीन ही नहीं  होता। ये मेरे ही मम्मी पापा हैं!

अब से मैं हमेशा अव्वल आऊंगी. तब पापा मम्मी नहीं लड़ेंगे. मम्मी कहती है, की मैं न होती तो वो पापा को छोड़ कर चली जाती. मैंने उनकी ज़िन्दगी ख़राब कर दी. पर अगर मैं अव्वल आऊंगी, तो पापा मम्मी को प्यार करेंगे. तब मम्मी गुस्सा नहीं होगी. तब लड़ाई नहीं, और लड़ाई नहीं, तो मम्मी की ज़िन्दगी भी ख़राब नहीं!

कभी कभी मुझे लगता है, की मैं बड़ी जमझदारी की बातें करती हूँ. और तुम्हे?

अच्छा, कल मिलेंगे!
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Sunday, June 05, 2016

You are reading one of the best blogs from India

Every year, a small, eclectic, non commercial bunch of people get together, work hard, and release a small list - the best Indian blogs. The list is released with no fanfare. Yet, this is the list I, as a reader, wait for. Each one of these blogs is a gem, and reading each one a pleasure. 

On this list, there are no blogger events, no contests, no promotions, no page rank based scores. There is only one way to make it to this list - write well, and provide good content.

You are reading one of the blogs on that list :)