Monday, April 30, 2018

आओ नया इक खेल बनाएं

आओ नया इक खेल बनाएं 
चंदा तारों की रेल बनाएं 
किला बनाएंगे धरती पर 
फ़ौज बनेगी हम सब की 
दुश्मन दूर आसमान से 
किसी दूर के ग्रह पर बैठे 
विचित्र तरह के प्राणी 
कैसी अनोखी सी शक्तियां 
विधाता से हैं पायी 
कल्पना के हम हथियार बनाएं 
असीम शक्तियों वाले 
ब्रह्मास्त्र को भी जो हरायें 
ऐसी ज्वाला वाले। 


आओ नया इक खेल बनाएं।
उस से सबका मन बहलायें







Sunday, April 29, 2018

3 saheliyaan 3 premi: Book Review/ Pustak sameeksha

इधर कुछ दिनों से हिंदी में नयी किताबें मिलना और भी मुश्किल हो गया है. लघु कहनियाँ और भी मुश्किल.


आकांक्षा पारे काशिव की किताब बड़ी उम्मीद से उठायी थी, और वो उम्मीद से भी बेहतर निकली। किताब पर लिखा है कि ये स्त्री मन की कहानियां हैं. पर ये तो मानव मन की कहानियां हैं.


अमूमन कहना चाहिए की शीर्षक वाली कहानी पुस्तक की सबसे अच्छी कहानी थी. पर ऐसा नहीं है. हर कहानी अपने में अनमोल है. हर कहानी कम से कम १ -२ दिन आपके साथ रहती है. हर कहानी के आखिर में हम मुस्कुराते हैं. 


"जादूगर" जैसे एक बच्चे को हम सब जानते हैं, और "ठिकाना" जैसी देवी जी भी सब के जीवन में कम से कम १ तो आती ही है. "पांचवी पांडव" पढ़ कर, मैं बहुत देर तक सोचती रही, कि क्या गलत है - जो हम लड़कों को सिखाते हैं, या जो हम लड़कियों के साथ करते हैं. न ये कहानियां १ मिनट के लिए भी ध्यान हटने देती हैं, और न ही कहीं कोई भाषण देती हैं. सुघड़ बुज़ुर्ग की तरह, मनोरंजन भी करती हैं, और अपनी बात भी समझा जाती हैं. 


"प्रश्न" कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी, और सर्वाइवल,  बहुत सच्ची थी. हर कहानी का यही दोष है इस किताब में - बहुत ही सच्ची है, इस लिए चुभती ज़्यादा है. थोड़ी सी झूठी होती, तो अच्छा होता - जैसे कड़वी दवाई में मीठा मिलाया जाता है. पर मीठा मिला देते, तो ये स्वाद कहाँ से आता? इन कहानियों में न तो ऊपर से मीठा मिलाया गया है, न बेकार की कड़वाहट घोली गयी है. ये कहानियां परफेक्ट (perfect) है. हर कहानी, अपने आप में परिपूर्ण।


मैं पुस्तक समीक्षा २ ही सूरत में करती हूँ - या तो किताब बहुत ख़राब होनी चाहिए, या बहुत अच्छी. ये वाली दूसरी श्रेणी में आती है. ज़रूर पढ़िए. 

Sunday, April 22, 2018

कांच

जब लोग दिल तोङते हैं
तो कोई उन से कोई सवाल नहीं करता 
पर जब मैं कांच तोड़ती हूं सारी रात 
तो हर कोई मुझे पागल कहता है। 

तुम ही कहो 
क्या दिल 
कांच से भी सस्ता है आजकल? 

मैं इस दुनिया में नही रहती 
मुझे कुछ पता नही चलता। 


 और मुझे आज तक पता ही नही चला
कि कांच ज्यादा important है
कि दिल।

17  साल हो गये। बताओ!  

Tunnels

I'm going down a tunnel. Like Alice in Wonderland.
Will you take the love along?
No. No. NO.

Will you take mom along?
No. No. NO.


Will you take me with you?
What other way is there?

Does the tunnel end?
We don't know. 

Saturday, April 14, 2018

Book Review: Namak Swadanusaar by Nikhil Sachan

It took me a long time to decide whether or not to write this review. Usually, when one doesn't like a book, one just tosses it off and moves on. Life is too short for things that you don't gel with. Like pieces in a jigsaw puzzle, we are better off finding our own groove and leaving behind the ones where we don't fit.


But here is the thing. With bad eyes, here one is, sitting and writing a review. Because, in this book, one kept waiting fro that one spark of brilliance. Mugalte was the story that provided it for me. Sadly, also the only one.


The thing about any piece of writing is, that while reading it, we should be able to feel the characters right there - in front of us. Their emotions become ours, their words play in our heads. This is why its so hard to let go of a good book. We live a good book while we read it.
In this case, the only voice that keeps playing in the head is that of the writer. The writer just never leaves the stories alone!


It is not the personality of the characters that shines through his words - it is the personality of the writer.


For the first time, I realised that writing a story is like a mother creating a child. When you see a child, you know that s/he comes from a parent, you can just about see the shape of the mother's jaw or perhaps her eyes. But what you see and experience is the child - an individual with its own soul, and its own personality. That is what is missing in Nikhil's writing.


So why is one taking the trouble to write a book review? Because 10 years later, I want someone to read this review and say "You were so wrong."


Nikhil has a lot of great stories inside him. His writing style is fresh and his own. The only thing I would like to see, as a reader, is the crafting of the story.


In short, I am writing this review because I believe in this writer, and some day, I want to read more by him.

Friday, April 06, 2018

Quotations

Being mean is not an action. It is a personality trait.


Even if someone tells u that they want your advice - they don't. They mostly just want to be heard without judgement. Do just that.


They always know the answer that they want to hear. It is not always the answer that they need to hear. Our tolerance for answers that we need to hear is at an all time low.

It is a great idea to stop talking to people. It is a pathetic idea to stop talking to yourself.

Life is too short for ego. I really mean that.


होता काम बोलता नहीं है।


Corollary: जो बोलता रहता है,  उस के पास काम करने का समय कब है?


This one is dedicated to all those who are constantly angry with "the system" and are constantly unhappy with everything:
मक्खी खुद को चाहे चील समझे, होती वो मक्खी ही है. आज तक किसी मक्खी ने शिकार कर के नहीं खाया. भिनभिनाती मक्खी शिकार ख़ाक करेगी?!


Size is only one of the dimensions of existence. The plane is another. The plane or layer or world that we inhabit. Mass/weight, maybe? Density? There are more. I m still finding out about them.

अच्छी  बातें बीज की तरह होती है। उन्हें फैला देना चाहिये। क्या पता, कहां जङ पकङ जायें।

रिश्ते न, fixed deposit के जैसे होते हैं। अगर investment ही नही करोगे, तो mature कैसे होंगे।

जिस पेङ की जङें हमने खोखली की हों, उसके फलने फूलने की इच्छा नहीं करनी चाहिये। पाप लगता है। 

The good things that people say to make it better? Morning makes it worse. Except, perhaps, God. 

Sunday, April 01, 2018

Katranein

तुम्हारे लिए कुछ लिखा:


एक ज़रा सी स्याही ने
लतीफे को रिश्ता बना दिया।

छोटे छोटे शब्द/ chhote chhote shabd

छोटे छोटे शब्द
कभी आरी , कभी चाकू
कभी तीर, कभी तलवार।


कभी मरहम,
कभी टांके,
कभी गोद
कभी मुंद्री।


मुंदरी: अंगूठी ; finger ring.


ਛੋਟੇ ਛੋਟੇ
ਅਥਰੇ ਆਖ਼ਰ
ਕਦੇ ਆਰੀ, ਕੱਦੇ ਚਾਕੂ
ਕੱਦੇ ਤੀਰ, ਕੱਡੇ ਤਲਵਾਰ


ਕੱਦੇ ਲੋਰੀ,
ਕਦੇ ਮਲ੍ਹਮ
ਕਦੀ ਟਾਂਕੇ ,
ਕੱਦੇ ਗੋਦੀ
ਕਦੇ ਮੁੰਦਰੀ। 

ek baari ka rishta


तेरा मेरा, एक बारी(window) का रिश्ता है. 
उस खिड़की में से, जितना तेरा कमरा दीखता है, और जितना मेरा कमरा दीखता  है,
उतना भर ही हम 
एक दुसरे को जानते हैं.


उस कमरे के बाहर 
तुम कौन हो, और कौन तुम्हारा है,
ये हम दोनों नहीं जानते।


किसी दिन 
या तो बारी बंद हो जानी है 


या फिर 
उस बारी में से 
निकालना पड़ेगा 
एक दरवाज़ा 
जिस में से हो कर 
हम एक दुसरे के कमरे में जाएँ 
अलमारियां फोलें 
सवाल पूछें 


फिर उस कमरे के बाहर 
का घर देखें
उस घर के आँगन का 
आसमान.


***********
You, and I
are in a relationship
defined
by a window.
We know exactly
as much as that window opens
into the other person's room.


Who (and whose) you are outside that room,
we have no idea.


One day, we will have to
close that window
OR
carve a door
out of it.
Through the door
we will visit
each other's rooms
open the wardrobes
ask silly questions.


And then,
it will be time
to step out of the room
and know the house.
To stand in the garden of the house
and see the sky
of this family. 


(Dedicated to all online relationships.)