Sunday, April 29, 2018

3 saheliyaan 3 premi: Book Review/ Pustak sameeksha

इधर कुछ दिनों से हिंदी में नयी किताबें मिलना और भी मुश्किल हो गया है. लघु कहनियाँ और भी मुश्किल.


आकांक्षा पारे काशिव की किताब बड़ी उम्मीद से उठायी थी, और वो उम्मीद से भी बेहतर निकली। किताब पर लिखा है कि ये स्त्री मन की कहानियां हैं. पर ये तो मानव मन की कहानियां हैं.


अमूमन कहना चाहिए की शीर्षक वाली कहानी पुस्तक की सबसे अच्छी कहानी थी. पर ऐसा नहीं है. हर कहानी अपने में अनमोल है. हर कहानी कम से कम १ -२ दिन आपके साथ रहती है. हर कहानी के आखिर में हम मुस्कुराते हैं. 


"जादूगर" जैसे एक बच्चे को हम सब जानते हैं, और "ठिकाना" जैसी देवी जी भी सब के जीवन में कम से कम १ तो आती ही है. "पांचवी पांडव" पढ़ कर, मैं बहुत देर तक सोचती रही, कि क्या गलत है - जो हम लड़कों को सिखाते हैं, या जो हम लड़कियों के साथ करते हैं. न ये कहानियां १ मिनट के लिए भी ध्यान हटने देती हैं, और न ही कहीं कोई भाषण देती हैं. सुघड़ बुज़ुर्ग की तरह, मनोरंजन भी करती हैं, और अपनी बात भी समझा जाती हैं. 


"प्रश्न" कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी, और सर्वाइवल,  बहुत सच्ची थी. हर कहानी का यही दोष है इस किताब में - बहुत ही सच्ची है, इस लिए चुभती ज़्यादा है. थोड़ी सी झूठी होती, तो अच्छा होता - जैसे कड़वी दवाई में मीठा मिलाया जाता है. पर मीठा मिला देते, तो ये स्वाद कहाँ से आता? इन कहानियों में न तो ऊपर से मीठा मिलाया गया है, न बेकार की कड़वाहट घोली गयी है. ये कहानियां परफेक्ट (perfect) है. हर कहानी, अपने आप में परिपूर्ण।


मैं पुस्तक समीक्षा २ ही सूरत में करती हूँ - या तो किताब बहुत ख़राब होनी चाहिए, या बहुत अच्छी. ये वाली दूसरी श्रेणी में आती है. ज़रूर पढ़िए. 

2 comments:

Onkar said...

Good review. Will try to get hold of the book.

How do we know said...

Onkar sir: Thank you! You will not be disappointed. its really a good book.