मांगी - तांगी हुई सी कुछ बात
दिन की झोली में भीख की रातें
मेरी दहलीज़ पर भी लाई थी
ज़िंदगी दे गई है सौगातें
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चाँद तन्हा है आसमान तन्हा
दिल मेरा है कहाँ कहाँ तन्हा
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआँ तन्हा
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा
हमसफ़र कोई 'गर कोई मिले भी कहीं
दोनों चलते रहें यहाँ तन्हा
जलती बुझती सी रोशनी के पड़े
सिमटा सिमटा सा इक मकां तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा
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टुकड़े टुकड़े दिन बीता, धज्जी धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम रिमझिम बूंदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हंस दीं, दिल रोया, ये अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते- आते, जाने कितने रूप भरे
जलती बुझती आँखों में, सादा सी जो बात मिली
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आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
जब ज़ुल्फ़ की कालिख में गम जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता
बहते हुए आँसू ने कहा आँखों से थम कर
जो मय से पिघल जाए वो जाम नहीं होता
(How much I LOVE this sher)
दिन डूबे या डूबे बारात लिए कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता
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बैठे हैं रास्ते में बयाबान-ए- दिल सजा कर
शायद इसी तरफ से इक दिन बहार गुज़रे