Thursday, November 30, 2017

Doob - poem by Bhagwati Prasad Dwivedi

धरती की छाती से लिपटी 
नन्ही नन्ही प्यारी दूब 
आपस में गलबहियां डाले 
करती सब से यारी दूब 


आंधी आती, तूफ़ान आते 
नहीं तनिक घबराती दूब 
पेड़ उखड़ते, डाल टूटती 
पर मुस्कान लुटाती दूब 


रात रात भर ओस कणों से 
जमकर नित्य नहाती दूब 
सूरज की किरणों के संग 
सतरंगे खेल रचाती दूब 

free put gyaan


कविता न, लाइफ में २ ही टाइम पर समझ आती है: एक, जब दिल लगता है, और दूसरा, जब दिल टूटता है. 

Monday, November 27, 2017

Sanskrit Lokoti

आचार: कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम् 
संभ्रम: स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम्


ब्यक्ति के आचरन से उसके परिवार का, बोलने से उसके देश का, व्यवहार से उसके मन का, और शरीर से उसके भोजन का पता चल जाता है। 


From a person's conduct, we can tell their family
From their language, we can tell their native land,
From their behaviour, their intentions,
and from their body, their food habits.



Quote.. aise hi..

Longing is louder than contentment.

Sunday, November 26, 2017

Its not "married but single".
Its "married, and therefore single."

Wednesday, November 22, 2017

I have learnt that hope can kill you a lot faster than heartbreak can.

Tuesday, November 21, 2017

Katranein: Us din ki baat

 वह: ये  जो हमारे आज, कल और परसों हैं न, ये बदले नहीं जा सकते. 


यह: hmm...  


वह: पर ये जो हमारे सपने हैं न, उन्हें इस आज, कल और परसों से कोई फर्क नहीं पड़ता. बादल की तरह वे इस पूरे धुंए, प्रदूषण, परिस्थिति से ऊपर उड़ जाते हैं. हर इंसान के सपने का बादल, उसके दिल से एक  लम्बे, पतले से तार से जुड़ा होता है. हम बिना किसी तकलीफ  के, दोनों दुनिया में जीते हैं. 


यह: कभी पहाड़ों पर घूमने गयी हो?


वह: हाँ...?


यह: पहाड़ों पर अक्सर बादल हमारे आस पास आ जाते हैं, और पल भर में ही, हम बादल के बीच में होते हैं. एक ही मिनट में, हमारा बादल, हमारा आज, अभी बन जाता है. 


ये जो " आज, अभी" होते हैं न, इन्ही सब को इकठ्ठा कर के बनते हैं, आज, कल, और परसों. 


वह: अच्छा? सच में? आज, कल, और परसों, सिर्फ "अभी, इस पल" का जोड़ है, बस?
इस वाले "अभी" को इकठ्ठा कर लें ?

Dard par 3 laghu kavitaayein

कुछ बातें हमने इस लिए न कीं ,
कि पपड़ी में से रिसने लगेगी पस 
कुछ बातें यूँ न हुईं,
कि कहने की ज़रुरत ही न थी.
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दर्द, दर्द को पहचाने है 
सात समंदर पार
दर्द, दर्द की करे टकोर
कर कर लम्बे हाथ। 


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शब्द बड़े ही बेमानी हैं 
दर्द की भाषा गहरी 
चल सखी,
यहां न पीड़ा बाँचें 
ये सारी दुनिया बहरी। 
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Sunday, November 19, 2017

Sunil Jogi's Children Poetry in Hindi

पढ़ते जाओ, पढ़ते जाओ,
सबसे आगे बढ़ते जाओ 


पढ़ने से ही ज्ञान मिलेगा 
गुरु से विद्यादान मिलेगा 
नए इरादे गढ़ते जाओ 
सब से आगे बढ़ते जाओ 


विद्या तो बेकार न होती 
पढ़े लिखे की हार न होती 
आसमान पर चढ़ते जाओ
सबसे आगे बढ़ते जाओ 


उस दिन जब तुम ज्ञानी होना 
बच्चो मत अभिमानी होना 
अंधकार से लड़ते जाओ 
सब से आगे बढ़ते जाओ
- सुनील जोगी

Saturday, November 18, 2017

Evolution


पहले 
लड़की होती है 
शोख, चंचल,
मन को भाने वाली 


फिर वो बन जाती है 
बद्तमीज़ 
और बहुत 
बदमिजाज़ 


फिर वो बनती है 
धीरे धीरे 
संस्कारी 
के करीब करीब 


इस के बाद वो बनती है 
बीमारू 
गुस्सैल 
जो कभी 
हंसती हुई 
नहीं नज़र आती 


तंग रहता है हर कोई 
उसकी मनगढंत बीमारियों 
और सदा की 
तानाशाही से। 



Maa

अभी मुझे किस बात की चिंता है?
अभी तो मेरी माँ ज़िंदा है..

Monday, November 13, 2017

Sara Shagufta's poem: Shaily ke naam


तुझे जब भी कोई दुःख दे 
उस दुःख का नाम बेटी रखना 

On Sara Shagufta..

किसी  की कहानी जानना,
और उसे उनकी ज़ुबानी सुनना
दो अलग अलग बातें हैं
चाहे कोई लिख कर ही सुनाये,
ये कहानी
सुनी नहीं जाती



Sunday, November 12, 2017

Arsenic

Stay away from this place.

You will not know
Another night of peace
Nor another moment without pain
Your eyes will bear forever
The imprint of that pain
The lines on your face
Will become kinder
Not happier
With time.
Do not enter
This pain.
Its like arsenic.
Only slower. 

Aaaj ka Suvichar

जब किसी के  पास ८ चीज़ें हों और २ चीज़ें न  हों,
तो उसे
उन ८ चीज़ों की ओर देखना चाहिए,
जो हैं
और उन २ चीज़ों को भूल जाना चाहिए
जो नहीं हैं


नोट: ये सुविचार केवल रात के ८ बजे तक लागू. उस के  बाद तो  पौधे भी सांस लेने को oxygen ही  मांगते हैं... 

Saturday, November 11, 2017


आओ, परत परत सी खोलें 
धीरे धीरे, हर दर्द को बोलें 


कुछ  कम कर दो अपनी आंच 
कुछ देर चलो, हम छाँव को जी ले 



Katranein - On Marriage

लो, शलगम का अचार. ख़ास तुम्हारे लिए मंगवाया है


 अब मैं शलगम का अचार नहीं खाती


ओह! घर में और तो कोई अचार है नहीं! तुम तो बिना अचार के खाना नहीं खा सकती!


माँ, अब मैं अचार ही नहीं खाती। 


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Thursday, November 09, 2017

On fighting prejudice..


हम ले तो आएंगे बटोर कर 
सारी दुनिया की कुंजियाँ 
पर जो दरवाज़े हमें खोलने हैं 
वो अंदर से बंद हैं। 


We could, of course, collect keys
from all over the world
But the doors we seek to open
Are bolted from the inside. 



Tuesday, November 07, 2017

Trishna aur Mrigtrishna


तृष्णा का अंत तृप्ति में हो सकता है,
पर मृगतृष्णा का अंत केवल मृत्यु ही है 


Desire may possibly end with the fulfilment of the desire,
But mirages only lead to death.


Know whether what you seek is a desire or a mirage.

On incompetence..


Incompetence is not a fault. Hiring an incompetent person for the job is. 


Original hai :)

Saturday, November 04, 2017

aam ka ped

कंधे पर रखा एक सर
न कोई इशारा होता है
न किसी मील का पत्थर
कंधे पर रखा हुआ  सर
अपनी मंज़िल है






हाथ  पर रखा हाथ
इशारा नहीं है
एक दिशा में बढ़ता कदम भी नहीं
हाथ पर रखा हाथ
एक सम्पूर्णता है
अपने ही क्षण में




आज, कल, परसों,
सफर
अंतहीन
और कुछ पल
जैसे रास्ते के किनारे का
घना आम का पेड़
जिसके नीचे बैठते ही
गैर ज़रूरी हो जाता है
रास्ता
मील के पत्थर , पड़ाव
रास्ते में खींची फोटुएं
और आगे तक की दूरी। 

Wednesday, November 01, 2017

sardi par baal kavita


सर्दी आयी, सर्दी आयी 
साथ में ऊनी कपडे लायी 
स्वेटर लाओ, टोपी लाओ 
और ओढाओ मुझे रजाई!
कुनकुनी सी धूप खिली है 
सुबह देर तक नींद है आई 
खेलना चाहें भाग भाग कर 
पर सुबह से धुंध है छायी 


सर्दी आयी, सर्दी आयी।