कंधे पर रखा एक सर
न कोई इशारा होता है
न किसी मील का पत्थर
कंधे पर रखा हुआ सर
अपनी मंज़िल है
हाथ पर रखा हाथ
इशारा नहीं है
एक दिशा में बढ़ता कदम भी नहीं
हाथ पर रखा हाथ
एक सम्पूर्णता है
अपने ही क्षण में
आज, कल, परसों,
सफर
अंतहीन
और कुछ पल
जैसे रास्ते के किनारे का
घना आम का पेड़
जिसके नीचे बैठते ही
गैर ज़रूरी हो जाता है
रास्ता
मील के पत्थर , पड़ाव
रास्ते में खींची फोटुएं
और आगे तक की दूरी।
न कोई इशारा होता है
न किसी मील का पत्थर
कंधे पर रखा हुआ सर
अपनी मंज़िल है
हाथ पर रखा हाथ
इशारा नहीं है
एक दिशा में बढ़ता कदम भी नहीं
हाथ पर रखा हाथ
एक सम्पूर्णता है
अपने ही क्षण में
आज, कल, परसों,
सफर
अंतहीन
और कुछ पल
जैसे रास्ते के किनारे का
घना आम का पेड़
जिसके नीचे बैठते ही
गैर ज़रूरी हो जाता है
रास्ता
मील के पत्थर , पड़ाव
रास्ते में खींची फोटुएं
और आगे तक की दूरी।
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