Thursday, November 30, 2017

Doob - poem by Bhagwati Prasad Dwivedi

धरती की छाती से लिपटी 
नन्ही नन्ही प्यारी दूब 
आपस में गलबहियां डाले 
करती सब से यारी दूब 


आंधी आती, तूफ़ान आते 
नहीं तनिक घबराती दूब 
पेड़ उखड़ते, डाल टूटती 
पर मुस्कान लुटाती दूब 


रात रात भर ओस कणों से 
जमकर नित्य नहाती दूब 
सूरज की किरणों के संग 
सतरंगे खेल रचाती दूब 

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