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Thursday, December 22, 2022

Short Story: Vo Shaam Kuchh Ajeeb Thi / वो शाम कुछ अजीब थी

 “कविता और जीवन साथ-साथ  नहीं चलते। कभी कभी कविता मनुष्य की हर कल्पना से बहुत आगे निकल जाती है। और कभी गहरी से गहरी कविता भी यथार्थ की जटिलता के सामने उथली लगती है। कविता और जीवन साथ नहीं चलते।“

ऐसी ही बेतुकी और बेबुनियाद बकवास लिखने मैं अक्सर घर से निकलता था, और पड़ोस की ईरानी चाय की दुकान पर डेरा जमा लेता था। मुझ पर शायर बनने का फितूर था। किसी की कल्पना में आज तक अपनी प्रतिभा को ले कर कोई शक उत्पन्न नहीं हुआ है। मेरे मन में भी कोई शंका नहीं थी। चचा ग़ालिब मुझसे मिले नहीं थे, अन्यथा अपना साहित्यिक उत्तराधिकारी मुझे ही नियुक्त कर के जाते, इस में कोई संशय नहीं।

हर कामयाब शायर के पीछे होता है एक चीखता, चिल्लाता, गालियां देता खानदान। मेरे पीछे भी था। आप बड़े शहर में रहने वाले नहीं समझ सकते कि छोटे शहरों में शायर बनने की महत्वाकांक्षा कैसी फजीहत कराती है। मैं कहना चाहता हूँ कि केवल ईरानी चाय वाले अंकल को मुझ से हमदर्दी थी – पर ऐसा भी कुछ नहीं था। समय देख कर वे भी मुझे कोई काम ढूंढने की सलाह दे ही देते थे।

इश्क का अरमान हर लड़के को होता है। मुझे भी था। पर उस दिशा में (या किसी भी दिशा में) मेहनत करने वाले दिन हम पैदा नहीं हुए थे। यहाँ तक की शायरी के लिए भी इसलाह लेना हमें मंजूर न था। “मेरी आवाज़ मेरी अपनी है – इस पर दुनिया के नियमों की दराँती नहीं चलनी चाहिए” जैसे जुमलों के पीछे हम अपनी प्रतिभाहीनता और आलस्य, दोनों को छिपाते थे।

कॉलेज के कुछ और दोस्त थे जिनकी कहीं नौकरी वौकरी नहीं लगी थी। मेरी बेवकूफी के मज़े लेने वो हफ्ते में 2-3 बार आ बैठते थे। उस दिन भी ऐसा ही कुछ था। सुरेश, राजेश, महेश टाइप के दोस्त आ कर बैठे थे। महेश उदास लग रहा था। पहले मैंने उसका दिल बहलाने के लिए 2-3 चुटकुले सुनाए। पर कोई असर न होता देख हमें लगा कि मामला गड़बड़ है। हमने उस से कुरेद कर पूछा। उदास व्यक्ति यूं ही गुब्बारे जैसा होता है – छोटा सा पिन चुभाते ही फट कर सारे राज़ खोल देता है। महेश की बहन की शादी थी। वर पक्ष की ओर से एक कन्या उसे पसंद आ गई थी, पर नौकरी ना होने से आगे कोई बात चल नहीं सकती थी। साथ ही रिश्तेदारी का मामला था – आशनाई की नहीं जा सकती थी, पर महेश बाबू का हृदय किसी प्रकार न मानता था।

बात सच में गंभीर थी। महेश ने हमें अपने फोन पर उसकी फोटो दिखाई, जो रोके में ली गई थी। हम सब ने रिवाज निभाते हुए कहा कि सच में बहुत सुंदर है। पर उस से आगे बात न बनी। महेश अपना मन हल्का करने के लिए एक कप  चाय और मँगवा कर पीने लगा। दारू का विचार, जो इस समय आपको आ रहा है, हम सब को भी आया। पर छोटे शहर में बेकार होने पर दारू पीना यानि अपनी शामत बुलवाना। पहले तो दुकान से आते जाते अंकल आंटी वहीं डांट देंगे, फिर घर पर जो मार पड़ेगी सो अलग।

अगले दिन महेश फिर आया। वैसे ही उदास। इस बार अकेला। हमने युक्ति लगाई। कन्या को पाने के 2 तरीके हैं – या नौकरी पा ली जाए, या पीठ पीछे लड़की को फँसाया जाए। हमने दोनों करने की सोची। महेश जी अगले दिन से अपने पिता की किराने की दुकान पर बैठने लगे, और मैंने लड़की का पीछा कर के उसकी पसंद नापसंद जानने का प्रोजेक्ट शुरू किया, ताकि आशिक साहब की मदद हो जाए।

एक हफ्ते में महेश को यह पता चल गया कि पिता के साथ दुकान पर बैठना उसके बस का नहीं। भूखों मरता हो तब भी नहीं। और मुझे पता चला कि गौरी को गोलगप्पे पसंद हैं, एक कपड़े की दुकान पर वह अमूमन 2-3 बार हफ्ते में जाती है, और उसका ट्यूइशन उसके घर से २० मिनट की दूरी पर है। ट्यूइशन से एक लड़का रोज उसका पीछा करता है घर से 5 मिनट दूर तक।

सबसे पहले तो ट्यूइशन वाले प्रेमी महोदय को सूचित किया गया कि गौरी उनके बस की नहीं। फिर महेश ने उस कपड़े की दुकान पर मैनेजर की नौकरी पकड़ ली। उसे ये नौकरी दिलाने के लिए हमें जो पापड़ बेलने पड़े वो फिर किसी दिन बताएंगे। और उसे उस नौकरी में रखने के लिए हम 2 दोस्त उसी दुकान पर मुफ़्त में नौकर हो गए। दुकान वाले अंकल खुश कि मैनेजर 2 बेगार के नौकर लाया है, मुझे क्या!

आपको एक बात अभी बता दूँ – कपड़ों की दुकान की नौकरी ईंट के भट्टे की नौकरी से बहुत बुरी है। जितना आप एक पूरे दिन में सोचते हैं, उस से ज़्यादा हर एक ग्राहक बोलता है। जितने कपड़े आप एक साल में पहनते हैं, उस से ज़्यादा हर ग्राहक खुलवा कर छोड़ देता है।

बस एक फायदा हुआ कि ईरानी चाय के पैसे बच गए। मम्मी पापा भी खुश हुए हम तीनों के - कि चलो काम पर तो लगे।

इस सब में २ महीने गुज़र गए। गौरी और महेश की अब आँखों आँखों में बातचीत होती थी। महेश जी अब नौकरीशुदा भी थे, तो उनके आत्मविश्वास की भी सीमा नहीं थी।

एक दिन, बहुत हिम्मत कर के, महेश जी ने गौरी जी को चाय पर बुला ही लिया – ईरानी चाय की दुकान पर नहीं, अंग्रेजी कैफै कॉफी डे पर।

गौरी जी आईं। महेश जी ने बात शुरू की – “आपने शायद पहचाना नहीं होगा – आप अपने मौसेरे भैया के रोके में आई थीं, हम आपकी होने वाली भाभी के सगे भाई हैं।“

गौरी जी ने धीरे से मुस्कुरा कर बताया कि वे पहले दिन से उन्हें पहचान गई थीं।

इसके बाद पूरी पिक्चर की १६ रील चली – शर्माना, रूठना, मनाना, प्रेमाग्रह करना, न-नकुर कर के फिर मान जाना, और अब बात क्लाइमैक्स पर आ कर टिकी – कि गौरी जी के पिताजी रूपी शेर के गले में रिश्ता ले कर जाने वाला सर कौन देगा?

 

वो शाम, जिसके बारे में सुनने को आप उतावले हो रहे हैं, उसके बारे में बताने से पहले गौरी के शेर रूपी पिता और महेश के गाय स्वरूप पिता की बात बताना आवश्यक है।

गौरी के पिता थे ठेकेदार – अत: पुलिसवालों, व्यापारियों, ईंट-भट्टा वालों, इधर उधर के सरकारी सिविल इंजीनियर और बाकी बाबूलोग, इन सब से उनका मिलना जुलना लगा रहता था। बहुत धाक थी – रिश्तेदारी में भी और मुहल्ले में भी।

महेश के पिता UDC थे – Upper Division Clerk। मतलब हैसियत और शख्सियत – दोनों से मध्यम वर्गीय। 

 

उस दिन, गौरी-महेश उसी कैफै कॉफी डे में बैठे कॉफी पी रहे थे, जब किसी कारणवश महेश के पिताजी का वहाँ आना हुआ। आ कर वे एक महिला के ठीक सामने बैठे। कुछ देर इधर उधर देखा। महेश की उनकी ओर पीठ थी। इसलिए बाप बेटा एक दूसरे को नहीं देख पाए। जब अंकल ने देखा कि सब ठीक ठाक है, तो धीरे से मुस्कुराये। आंटी का हाथ, जो टेबल पर उनके हाथ की बाट जोह रहा था, उन्होंने धीरे से थाम लिया। फिर वे दोनों धीरे धीरे बातें करने लगे।

महेश ने यह सब नहीं देखा था। पर गौरी देख रही थी।

उसने महेश से उसी समय वादा लिया कि आज के आज वह अपने घर में बात करेगा और कल – परसों में अपने माता पिता को रिश्ता ले कर भेज देगा नहीं तो वह किसी और रिश्ते के लिए हाँ कर देगी।

महेश इस अचानक वार से हतप्रभ था। पर इसकी अवश्यंभाविता को वह समझ गया था।

उसी समय घर पहुंचा। पिताजी अभी घर नहीं आए थे। महेश ने माँ को अकेला पा कर धीरे से उन से बात की। माँ ने घर खानदान का पूछा। महेश को कुछ पता न था। बस इतना भर कि जीजाजी की मौसेरी बहन है।

माँ अब परेशान। बेटी के भावी ससुराल में फोन कर के खानदान की जांच परख कैसे करें। बेटा तो दो दिन रुकने को तैयार नहीं है। पति हैं कि पता नहीं कहाँ गायब हैं।

पिताजी रात को आठ बजे घर पहुंचे। माताजी ने किसी तरह उन्हें चाय दी और उसी समय रामायण खोल कर बैठ गईं। पिताजी गौरी जी के पिता को जानते थे। उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी।

उसी समय महेश की दीदी ने अपने “उन” को फोन लगाया और बात बताई। साथ ही गौरी जी का अल्टीमेटम भी सुना दिया – कि १-२ दिन में रिश्ता ले कर जाना है।

अब जीजाजी फंसे।

घर पर माता पिता से कहते हैं, तो रिश्ता स्वीकार होने की कोई गुंजाइश नहीं। उल्टा ऐसे लुच्चे लड़के की बहन को उनके घर में लाया जाए या नहीं, इस पर भी विचार शुरू हो जाएगा।

उन्होंने दबे शब्दों में दीदी से कहा कि बात उनकी शादी तक टल जाए, तो अच्छा रहेगा।

महेश ने ये बात गौरी जी से कही, पर गौरी जी ने अपनी deadline नहीं बदली। १-२ दिन मतलब १-२ दिन। (उसे डर था कि महेश के पिता के प्रेम प्रसंग की बात अगर निकल गई, तो रिश्ता होगा ही नहीं)

अब क्या किया जाए? घर के चारों सदस्य बैठे। दीदी ने अपनी परेशानी बताई और महेश ने अपनी।

पिताजी ने ज़ोर का ठहाका लगाया। किसी को इसकी आशा नहीं थी। पिताजी शांत, सोबर किस्म के आदमी थे। आसानी से डरने वाले।

फिर वे बोले, “ फिकर न करो। अभी सब ठीक कर के आता हूँ।“ ऐसा कह कर वे रात के ९ बजे घर से निकले। अब छोटे शहरों में रात के ९ बजे लोग घर में होते हैं और बाजार आदि में... आप समझ गए कौन होते हैं।

पिताजी ९ बजे निकले तो १०:३० बजे लौटे। मोबाईल भी नहीं उठा रहे थे। माँ तो डर के मारे बेहाल!

पिताजी ने आते ही घोषणा की – घंटा भर रुको, बताता हूँ।

घंटा बीता। कोई नहीं सोया। उसके ऊपर भी ५ मिनट हो गए। पिताजी बस अपना फोन देखते जा रहे थे। कह कुछ नहीं रहे थे। माँ ने सोने की तैयारी शुरू की। जब चादरें बिछ चुकीं, तब पिताजी अपने कमरे से निकले – “परसों नेग ले कर जाना है, बस शगुन कर के लड़की रोक लेंगे। अगले हफ्ते सगाई कर देंगे। जैसा तुम्हारी बहु चाहती है, वैसा ही होगा। ब्याह भी जल्दी ही कर लेना। अब रुकने से क्या फायदा! तुम दोनों राज़ी हो, तुम्हारी नौकरी लगी है, लड़की भी final year में है।“

हम जैसे निठ्ठले दोस्त और हर समय कोसे जाते हैं, पर शादी के समय सबसे ज़्यादा काम बेरोजगार दोस्त ही करते हैं, इस बात का इतिहास गवाह है।

सगाई हुई, शादी भी हो गई।

पर मैं भी तो कवि हूँ। इस कहानी का सब से गूढ रहस्य सब से छुपा रहा था – मुझ से नहीं – आखिर गौरी जी के पिताजी ने हाँ कर कैसे दी, वह भी एक ही शाम में? एक ही शाम में दोनों माता पिता को प्रेम विवाह के प्रकरण में मना लेना चमत्कार था, Guinness का रिकार्ड था! और वह राज़ था, जिसका खुलना ज़रूरी था।

गुत्थी की चाबी थी महेश के पिता के पास। तो, हम लोगों ने दूल्हे को honeymoon पर विदा वगैरह करा कर, एक दिन अंकल को धर लिया। सोम रस का पान कराया गया, धर्मभीरु आत्मा में से धर्म का भय निकाला गया, और फिर, जब लोहा गरम हुआ, तब चोट की गई – उन से गौरी जी के पिता के मानने का रहस्य पूछा गया।

“वो क्या बताऊँ बेटा.. तुम लोग भी अब जवान हो, सब समझते हो। वो, ठेकेदार साहब की जो ‘वो’ हैं न, उनके बारे में मैं तो जानता हूँ, भाभी जी नहीं जानती हैं। उन्हें लगता है कि मेरा पति घूस देता है, सिमेन्ट में रेत मिलाता है, पर पराई स्त्री को कभी बुरी नज़र से नहीं देखता।

अब बात ये है कि ठेकेदारी के कारोबार में जितना पैसा लगा है, वह भाभीजी के मायके का है।  

तो मैंने उन से कहा, समधी बन जाते हैं, घर की बात घर में ही रहे, तो अच्छा है।

समझदार तो वे हैं ही, फौरन मान गए।“

मैंने कहा था न, कभी गहरी से गहरी कविता भी यथार्थ की जटिलता के सामने उथली लगती है।

 

Monday, September 19, 2022

देवी आहिल्या का मुकदमा

Note: 

1. This story is based on the original story of Devi Ahilya being cursed by her husband, Rishi Gautam, for her disloyalty. Please read that story for context. 

2. I understand that in some versions of the original story, Devi Ahilya knew that Indra wasn't her husband and was complicit in the act. However, in the original version that I have read, Devi Ahilya was tricked into believing that it was her husband. I accept this version of the story, simply because if Devi Ahilya was complicit, Indra would not have needed to take another form at all. Also, that was the first version I heard from my family. The second version, of Devi Ahilya being complicit, appears to be of recent origin. 



स्वर्ग में हाहाकार मचा हुआ थाऋषि गौतम ने देवी अहिल्या को श्राप दिया था! किन्तु यह क्या! देवी अहिल्या ने ऋषि गौतम का श्राप लौटा दिया, और अपने पति से मुकदमे की मांग करने लगीं।

“आपने मुझे पवित्र होते हुआ भी श्राप दिया है! इस श्राप को अपनाने का अर्थ है, अपना दोष मान लेना। किन्तु मैं दोषी नहीं हूँ! इसलिए मुझे न्याय चाहिए!”

ऋषि गौतम और देवी आहिल्या के बीच का झगड़ा,वह भी देवराज इंद्र के कारण! त्रिमूर्ति के अलावा उस का निर्णायक कौन हो सकता था? यही निश्चय किया गया कि उस मुकदमे के जज त्रिमूर्ति में से ही एक होंगे।

पहला नाम तो ब्रह्मा जी का ही आया। किन्तु ऋषि गौतम को देवी सरस्वती का स्मरण हो आया और उन्होंने ब्रह्मा जी को जज बनाने का विचार तुरंत छोड़ दिया।

अगला नाम श्री विष्णु का था। जैसे ही वे सब अपना मुकदमा ले कर बैकुंठ पहुंचे, श्री लक्ष्मी देवी ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया। “मेरे पति वैसे ही दुनिया भर के जी जंजालों में फंसे हुए हैं! ब्रह्मा जी बना कर निकल लिए और शिव जी को हर युग में एक बार काम करना होता है। पर ये रोज़  का पालन पोषण, इस में कितना समय लगता है, कितनी मेहनत करनी पड़ती है, किसी ने सोचा है!? 2 पल का समय नहीं मिलता हम पति पत्नी को साथ में बैठने का! शिव और पार्वती जी तो धरती भ्रमण को भी साथ ही जाते हैं, पर इनके और मेरे तो भक्त भी same नहीं हैं! इनको अलग प्रार्थना की कॉल पर जाना पड़ता है और मुझे अलग! तरस गई मैं साथ में बैठ कर एक समय का भोजन करने को! खबरदार जो उन्हें एक पल का भी काम और देने की सोची! वैसे भी, धरती के संविधान में अब Executive और Judiciary का काम एक ही संस्था को नहीं दे सकते। वैकुंठ का ऑफिस केवल Executive है, हमें Judiciary चलाने का अधिकार नहीं है। आप लोग अपना झगड़ा ले कर कहीं और जाइए!”

 

अब तीसरा नाम शिव का ही हो सकता था। यह प्रस्ताव देवी आहिल्या को विशेषकर अच्छा लगा। उन्होंने कहा, “शिव तो हैं ही एक पत्नी धारी। उन्होंने माँ पार्वती के देह छोड़ने के बाद भी, उनके अगले जन्म की प्रतीक्षा की। और कोई विवाह नहीं किया। ऐसी ही निष्ठा मेरी भी मेरे पति के प्रति है। शिव ही श्रेष्ठ रहेंगे। निष्ठा और loyalty की पहचान शिव से अच्छी कौन कर सकता है?”

बात सभी को जंच गई।

शिव की अदालत में मुकदमा शुरू हुआ।

गौतम ने पहले अपनी बात रखी – मेरी पत्नी सती है। इसे अपनी योगिक शक्ति से पता चल जाना चाहिए था कि वह पुरुष मैं नहीं, मेरे रूप में इन्द्र है! यदि उसे पता नहीं चला, तो अवश्य ही उसके सतीत्व में कोई खोट है।“

सभा में सब सर हाँ की मुद्रा में हिले। देवी आहिल्या कोई ऐसी वैसी पत्नी नहीं थीं। कितनी विद्या और योग शक्ति थी उनके पास!

अब देवी अहिल्या उठीं।

“मेरे पति का आरोप है, कि मैंने अपनी दिव्य दृष्टि से क्यूँ नहीं देखा कि वे गौतम नहीं, इन्द्र हैं?

मेरा कहना है की यह प्रश्न ही निर्मूल है। मेरे जानने या न जानने से घटनाक्रम पर कोई असर ही नहीं पड़ता । कैसे?

अगर मैं जान भी लेती कि यह व्यक्ति इन्द्र है, तब भी, क्या वह मान जाता कि वह इन्द्र है? वह हठ करता कि वह गौतम ही है। इस हठ के सामने मेरी एक नहीं चलती। आज भी, धरती लोक पर एक ब्याहता पत्नी अपने पति के परिणय निवेदन को अस्वीकार नहीं कर सकती। Marital rape is not a crime on Earth.अगर मैं मना भी करती, और वह बल का प्रयोग करता, क्यूंकि ऐसा हर पति का अधिकार है। “

पार्वती जी और गणिकाएँ यह सुन कर हाँ की मुद्रा में सर हिलाने लगीं।

“पर तुम फिर भी check तो कर सकती थीं?” गौतम अब भी हार मानने को तय्यार नहीं थे।

“पतिदेव, आप, मुझ, और इन्द्र में से, सर्वाधिक मायावी शक्तियां इन्द्र के पास हैं, उस के बाद आप के पास। आप मुझे बताइए – आधी रात को मुर्गा बांग देता है, चाँद अब भी आसमान में है, और आपको कुछ खटकता भी नहीं? मुझ सोई हुई को चेक कर लेना चाहिए था? आपकी दिव्य दृष्टि कहाँ थी?

धरती पर भी एक कहावत है – ज़र, जोरू, और ज़मीन का ध्यान रखना चाहिए। तो आप बताइए, कि आपने अपनी पत्नी की रक्षा क्यूँ नहीं की? आपके सामने लक्षण थे, उन  लक्षणों को आपने अनदेखा किया।  आपकी लापरवाही से मेरे मान की हानी हुई। आपको क्या दंड मिलना चाहिए?”

सभा में चुप्पी छा गई। केवल देवी अहिल्या की आवाज आ रही थी।

“मैं किसी पर पुरुष से संसर्ग करने घर के बाहर नहीं गई। ना ही मैंने आपको छल से कहीं भेज कर पर पुरुष को आमंत्रित किया। आपकी लापरवाही से, आपके घर में, आपके संरक्षण में, मेरे साथ छल हुआ है।

मैंने अपने पति का परिणय निवेदन पाया, और हमेशा की तरह हाँ कर दी।

इन में से आप क्या बदलना चाहेंगे?

क्या हर सती स्त्री अपने पति का परिणय निवेदन पाते ही दिव्य दृष्टि से चेक करे, कि यह व्यक्ति पति है कि नहीं?

या, सती स्त्री को अधिकार है, कि यदि वह शंका में हो तो पति से संसर्ग न करे?”

जैसे ही देवी आहिल्या की बात समाप्त हुई, शिव और पार्वती ने धीरे से एक दूसरे को  देखा और मुस्कुराये।

ऋषि गौतम को परिणाम सुनने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी। पर मुद्दई थे, मुकदमा छोड़ कर भी कैसे भागते?

शिव जी ने देवी अहिल्या से पूछा – “देवी, आपके पति से, अपने घर में, आपके संरक्षण में कमी हुई है। रात्रि के समय वे आपको अकेला छोड़ कर चले गए थे। इसका दंड तो उन्हें दिया जा सकता है, पर पति पत्नी का मामला है, आप लोग आपस में सुलझा भी सकते हो।“

ऋषि गौतम और देवी अहिल्या ने एक दूसरे की ओर देखा, और जैसे Family Court से सफल जोड़े निकलते हैं, दोनों हाथ में हाथ डाले वहाँ से निकले।