Wednesday, November 23, 2022

Book review: Smriti ek Doosra Samay Hai by Manglesh Dabral मंगलेश डबराल की पुस्तक - स्मृति एक दूसरा समय है

 



इस पुस्तक की समीक्षा एकदम सरल व आसान है - इसे मत पढिए। 

कुछ ही ऐसे क्षण आते हैं जब इंसान स्वयं को धन्य समझता है, कि उसका पाला फलां इंसान से न कभी पड़ा है, न पड़ेगा। इस पुस्तक को समाप्त करना जीवन के ऐसे ही क्षणों में से एक है। 

यह कविता कोश नहीं है। यह एक किशोर की राजनीतिक शिकायतों का पुलिंदा है। इस में जो छपी हैं वे कविताएँ नहीं है। कहीं वे ऊबड़ खाबड़ सी एक कहानी का रूप ले लेती है, जिसका न सिर मिलता है न पैर। कभी वे बाकी लेखकों के ख्यालों की जुगाली कर के उन्हें पुन: प्रस्तुत करने  का प्रयत्न हैं, कभी पद्य में कहानी बताने की चेष्टा होती है (जैसे कुरिएन की कहानी), कभी गद्य में कोई ख्याल (जैसे तानाशाह)। सब प्रयत्न विफल ही रहते हैं। हाँ, पाठक का समय और पैसा, दोनों भरपूर बर्बाद होते हैं। 

कोई कह सकता है कि किताब इतनी बुरी लग रही थी तो बीच में छोड़ देते, या कोई यह भी कह सकता है कि किताब नहीं पसंद तो उसे दरकिनार करो और आगे बढ़ो। दोनों बातों का जवाब है। 
पहली का तो यह कि लेखक मशहूर हैं। मुझे लगा, पाठक में ही कमी होगी। कोई एक कविता तो अच्छी होगी पूरे संग्रह में। इसी आस में लगे रहे। 

दूसरी बात का जवाब यह है कि अगर कोई भला मानस एक समीक्षा कर देता, तो मेरा समय बच जाता। मन में जो आक्रोश पैदा हुआ इस दर्जे के लेखन को पढ़ कर, वह भी बच जाता। यह समीक्षा बाकी पाठक गण पर उपकार स्वरूप की जा रही है। 

कोई ख्याल नया नहीं है। कोई बात नई नहीं है।
ना विचार पर 'वाह!' निकलती है, ना विचार की अभिव्यक्ति पर। 

मंगलेश जी की और कोई किताब मैंने नहीं पढ़ी है। यदि आपको ये लेखक पसंद है, तो अवश्य पढिए। यदि पहले इन्हें नहीं पढ़ा है, तो रहने दीजिए। 

 

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