Thursday, December 01, 2022

Manoj Muntashir ki shayari

 These are the pieces I like: 


सीने में था जो भी लहू लफ्जों में सारा भर दिया 

हमसे जितना हो सका उतना तो हमने कर दिया 

************* 

हम  हैं इस दौर के ग़ालिब हमें सलाम करो 

शेर वैसे न सही जीते तो उधार पे हैं 

***** 

बिगड़ा जो वक़्त मेरा तो कितना बिगड़ गया 

उतना बसा नहीं था मैं जितना उजड़ गया 

*********** 

यूं तू-तड़ाक न कर, मैं 'जी हुज़ूर' हूँ 

नीलाम हो रहा हूँ मगर कोहिनूर हूँ 

********** 

लपक के जलते थे बिल्कुल शरारे जैसे थे 

नए नए थे तो हम भी तुम्हारे जैसे थे 

******* 

मैं दिल निकाल के रख देता हूँ उसके आगे 

ये कागजात भी वो फर्जी समझ लेता है 

****** 

वो मेरे आंसुओं पे हंस रहा है 

मुहब्बत में तो ये होता नहीं है 


मैं रोता हूँ मेरे शेरों में छुप कर 

मेरी आँखों में अब दरिया नहीं है 

*********** 

हथेली खुल गई जिस पल ये जुगनू छूट जाएंगे 

अगर तुम आज़माओगे तो रिश्ते टूट जाएंगे 

************ 

मेरे बाबूजी बूढ़े हैं मगर अब भी ये आलम है 

वो मेरे पास होते हैं तो मुझ को डर नहीं  लगता

 ******** 

जब भी खुशियां फली हैं मुझ पे, मैंने पत्थर खाया है 

मैं इंसान हूँ पर मैंने पेड़ों का मुकद्दर पाया है 

***** 

इतना मसरूफ़ हैं कि बात नहीं होती है 

आपके शहर में क्या रात नहीं होती है? 

******** 

ऐ आसमान मैं पी रहा हूँ जहर इश्क का 

तुझसे ज़्यादा नीला मैं हो के दिखाऊँगा 

******* 

गरीबी में नहीं बिकने दिया इक छोटा सा टुकड़ा 

अमीरी में ज़मीनें खानदानी छोड़ दीं हमने 


वो मौसी लखनऊ वाली बरेली के वो ताऊ जी 

ये रिश्तेदारियाँ कब की निभानी छोड़ दीं हमने 

******************* 

निवाले माँ खिलाती थी तो सौ नखरे दिखाते थे 

नहीं है माँ तो सारी आनाकानी छोड़ दी हमने 

********* 

तारीफ़ों के लायक न शोहरत का हकदार हूँ 

सारी बिजली उसकी है मैं तो केवल तार हूँ 

******** 

बहुत खुश था दिलों में घर बना के 

तभी बादल ने मुझ से पूछा आ के 

तुम्हारे सर पे अब तक छत नहीं है 

कहाँ जाओगे जब बरसात होगी 

**** 

मैं खंडहर हो गया पर तुम न मेरी याद से निकले 

तुम्हारे नाम के पत्थर मेरी बुनियाद से निकले 

********* 

पत्थर पिघले, तारे टूटे, शोले बरसे, चाँद बुझा, 

हाय रे मालिक, इक दुखिया के अश्कों में इतनी तासीर 

*********** 

मेरी नींदों में भी पारियाँ आई हैं 

बादल के बिस्तर पे लेटा मैं भी हूँ 

तो क्या जो मेरे नाम रियासत नहीं कोई 

अपनी माँ का राजा बेटा मैं भी हूँ 

************ 

 

No comments: