Friday, December 30, 2022

More original quotes

The Venn Diagram of Ikigai is Japanese in the same way that French Fries is French. 

RTC here: https://ikigaitribe.com/what-is-ikigai/

https://japanintercultural.com/free-resources/articles/what-is-ikigai/

https://www.sloww.co/ikigai/


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यह सृष्टि का नियम है कि माता पिता के शौक, बच्चों के शोक का विषय होते हैं, और बच्चों के शौक, माता पिता को शोक देते हैं। 

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I love social media posts that demonstrate GK, IQ, and intent at the same time. 

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 I want to meet the genius who named Delhi's climate band "temperate".

At this time, the Open Air Fridge of Delhi is consistently maintaining 5 degrees.
I would post a picture of View from my Window, but that would give the term Smokescreen a whole new meaning.
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Saturday, December 24, 2022

Book Review: Vyangay Samay by Harishankar Parsai - Kitabghar Prakashan

 

व्यंग्य सच में साहित्य की सब से कठिन विधाओं में से एक है। प्यार से चपेट मारना, वह भी ऐसे कि सामने वाला मार भी खाए और हँसे भी, शर्मिंदा भी हो और मुस्कुरा भी रहा हो - पञ्जाबी में इसके लिए एक कहावत है - भिगो कर जूते मारना। 

हरिशंकर परसाई इस विधा के प्रेमचंद हैं। पुस्तक में करीब ४४ संकलित व्यंगय हैं - कुछ छोटे छोटे छोटे, कुछ ४-५ पन्नों के। सभी रुचिकर हैं, गुदगुदाते हैं। 

इन्स्पेक्टर मातादीन चाँद पर, भेड़ें और भेड़िये, सदाचार का ताबीज़, भोलाराम का जीव - ये व्यंगय कथाएँ लगभग सभी ने पढ़ी हुई हैं। इस संकलन में  ये व्यंग्य मुझे अच्छे लगे: 

सत्य साधक मण्डल 

अश्लील पुस्तकें 

क्रांतिकारी की कथा (ये सच में मजेदार है) 

कंधे श्रवनकुमार के - सोचने पर मजबूर करती है 

कैलंडर का मौसम - नया साल पास हो तो इस से अच्छा व्यंग्य है ही नहीं! 

संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई - सामाजिक बदलाव का यह नजरिया अच्छा है 


व्यंग्य पढ़ने में जो रस पाठक को आना चाहिए, वह तो आता ही है, जो आत्मनिरीक्षण होना चाहिए, वह भी प्रचुर मात्रा में होता है। 

इस पुस्तक को अवश्य पढिए। संकलन वाकई अच्छा है। 

 

Friday, December 23, 2022

उदास बच्चे की डायरी

उदास बच्चे की डायरी 

सदियों से हो कर आने वाली 

एक छोटी सी सुबक है 

जो चीर देती है 

हमारी बलवान सामूहिक 

उदासीनता को 

जैसे neutron के बीच का छोटा सा कण 

Nuclear Bomb बन जाता है। 

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The journal of a sad child

is a tiny sob

that traverses centuries 

to reach us

To tear through  

our collective social apathy 

to suffering. 

Like a tiny particle in a neutron

Becomes

a nuclear bomb. 




 

Thursday, December 22, 2022

Short Story: Vo Shaam Kuchh Ajeeb Thi / वो शाम कुछ अजीब थी

 “कविता और जीवन साथ-साथ  नहीं चलते। कभी कभी कविता मनुष्य की हर कल्पना से बहुत आगे निकल जाती है। और कभी गहरी से गहरी कविता भी यथार्थ की जटिलता के सामने उथली लगती है। कविता और जीवन साथ नहीं चलते।“

ऐसी ही बेतुकी और बेबुनियाद बकवास लिखने मैं अक्सर घर से निकलता था, और पड़ोस की ईरानी चाय की दुकान पर डेरा जमा लेता था। मुझ पर शायर बनने का फितूर था। किसी की कल्पना में आज तक अपनी प्रतिभा को ले कर कोई शक उत्पन्न नहीं हुआ है। मेरे मन में भी कोई शंका नहीं थी। चचा ग़ालिब मुझसे मिले नहीं थे, अन्यथा अपना साहित्यिक उत्तराधिकारी मुझे ही नियुक्त कर के जाते, इस में कोई संशय नहीं।

हर कामयाब शायर के पीछे होता है एक चीखता, चिल्लाता, गालियां देता खानदान। मेरे पीछे भी था। आप बड़े शहर में रहने वाले नहीं समझ सकते कि छोटे शहरों में शायर बनने की महत्वाकांक्षा कैसी फजीहत कराती है। मैं कहना चाहता हूँ कि केवल ईरानी चाय वाले अंकल को मुझ से हमदर्दी थी – पर ऐसा भी कुछ नहीं था। समय देख कर वे भी मुझे कोई काम ढूंढने की सलाह दे ही देते थे।

इश्क का अरमान हर लड़के को होता है। मुझे भी था। पर उस दिशा में (या किसी भी दिशा में) मेहनत करने वाले दिन हम पैदा नहीं हुए थे। यहाँ तक की शायरी के लिए भी इसलाह लेना हमें मंजूर न था। “मेरी आवाज़ मेरी अपनी है – इस पर दुनिया के नियमों की दराँती नहीं चलनी चाहिए” जैसे जुमलों के पीछे हम अपनी प्रतिभाहीनता और आलस्य, दोनों को छिपाते थे।

कॉलेज के कुछ और दोस्त थे जिनकी कहीं नौकरी वौकरी नहीं लगी थी। मेरी बेवकूफी के मज़े लेने वो हफ्ते में 2-3 बार आ बैठते थे। उस दिन भी ऐसा ही कुछ था। सुरेश, राजेश, महेश टाइप के दोस्त आ कर बैठे थे। महेश उदास लग रहा था। पहले मैंने उसका दिल बहलाने के लिए 2-3 चुटकुले सुनाए। पर कोई असर न होता देख हमें लगा कि मामला गड़बड़ है। हमने उस से कुरेद कर पूछा। उदास व्यक्ति यूं ही गुब्बारे जैसा होता है – छोटा सा पिन चुभाते ही फट कर सारे राज़ खोल देता है। महेश की बहन की शादी थी। वर पक्ष की ओर से एक कन्या उसे पसंद आ गई थी, पर नौकरी ना होने से आगे कोई बात चल नहीं सकती थी। साथ ही रिश्तेदारी का मामला था – आशनाई की नहीं जा सकती थी, पर महेश बाबू का हृदय किसी प्रकार न मानता था।

बात सच में गंभीर थी। महेश ने हमें अपने फोन पर उसकी फोटो दिखाई, जो रोके में ली गई थी। हम सब ने रिवाज निभाते हुए कहा कि सच में बहुत सुंदर है। पर उस से आगे बात न बनी। महेश अपना मन हल्का करने के लिए एक कप  चाय और मँगवा कर पीने लगा। दारू का विचार, जो इस समय आपको आ रहा है, हम सब को भी आया। पर छोटे शहर में बेकार होने पर दारू पीना यानि अपनी शामत बुलवाना। पहले तो दुकान से आते जाते अंकल आंटी वहीं डांट देंगे, फिर घर पर जो मार पड़ेगी सो अलग।

अगले दिन महेश फिर आया। वैसे ही उदास। इस बार अकेला। हमने युक्ति लगाई। कन्या को पाने के 2 तरीके हैं – या नौकरी पा ली जाए, या पीठ पीछे लड़की को फँसाया जाए। हमने दोनों करने की सोची। महेश जी अगले दिन से अपने पिता की किराने की दुकान पर बैठने लगे, और मैंने लड़की का पीछा कर के उसकी पसंद नापसंद जानने का प्रोजेक्ट शुरू किया, ताकि आशिक साहब की मदद हो जाए।

एक हफ्ते में महेश को यह पता चल गया कि पिता के साथ दुकान पर बैठना उसके बस का नहीं। भूखों मरता हो तब भी नहीं। और मुझे पता चला कि गौरी को गोलगप्पे पसंद हैं, एक कपड़े की दुकान पर वह अमूमन 2-3 बार हफ्ते में जाती है, और उसका ट्यूइशन उसके घर से २० मिनट की दूरी पर है। ट्यूइशन से एक लड़का रोज उसका पीछा करता है घर से 5 मिनट दूर तक।

सबसे पहले तो ट्यूइशन वाले प्रेमी महोदय को सूचित किया गया कि गौरी उनके बस की नहीं। फिर महेश ने उस कपड़े की दुकान पर मैनेजर की नौकरी पकड़ ली। उसे ये नौकरी दिलाने के लिए हमें जो पापड़ बेलने पड़े वो फिर किसी दिन बताएंगे। और उसे उस नौकरी में रखने के लिए हम 2 दोस्त उसी दुकान पर मुफ़्त में नौकर हो गए। दुकान वाले अंकल खुश कि मैनेजर 2 बेगार के नौकर लाया है, मुझे क्या!

आपको एक बात अभी बता दूँ – कपड़ों की दुकान की नौकरी ईंट के भट्टे की नौकरी से बहुत बुरी है। जितना आप एक पूरे दिन में सोचते हैं, उस से ज़्यादा हर एक ग्राहक बोलता है। जितने कपड़े आप एक साल में पहनते हैं, उस से ज़्यादा हर ग्राहक खुलवा कर छोड़ देता है।

बस एक फायदा हुआ कि ईरानी चाय के पैसे बच गए। मम्मी पापा भी खुश हुए हम तीनों के - कि चलो काम पर तो लगे।

इस सब में २ महीने गुज़र गए। गौरी और महेश की अब आँखों आँखों में बातचीत होती थी। महेश जी अब नौकरीशुदा भी थे, तो उनके आत्मविश्वास की भी सीमा नहीं थी।

एक दिन, बहुत हिम्मत कर के, महेश जी ने गौरी जी को चाय पर बुला ही लिया – ईरानी चाय की दुकान पर नहीं, अंग्रेजी कैफै कॉफी डे पर।

गौरी जी आईं। महेश जी ने बात शुरू की – “आपने शायद पहचाना नहीं होगा – आप अपने मौसेरे भैया के रोके में आई थीं, हम आपकी होने वाली भाभी के सगे भाई हैं।“

गौरी जी ने धीरे से मुस्कुरा कर बताया कि वे पहले दिन से उन्हें पहचान गई थीं।

इसके बाद पूरी पिक्चर की १६ रील चली – शर्माना, रूठना, मनाना, प्रेमाग्रह करना, न-नकुर कर के फिर मान जाना, और अब बात क्लाइमैक्स पर आ कर टिकी – कि गौरी जी के पिताजी रूपी शेर के गले में रिश्ता ले कर जाने वाला सर कौन देगा?

 

वो शाम, जिसके बारे में सुनने को आप उतावले हो रहे हैं, उसके बारे में बताने से पहले गौरी के शेर रूपी पिता और महेश के गाय स्वरूप पिता की बात बताना आवश्यक है।

गौरी के पिता थे ठेकेदार – अत: पुलिसवालों, व्यापारियों, ईंट-भट्टा वालों, इधर उधर के सरकारी सिविल इंजीनियर और बाकी बाबूलोग, इन सब से उनका मिलना जुलना लगा रहता था। बहुत धाक थी – रिश्तेदारी में भी और मुहल्ले में भी।

महेश के पिता UDC थे – Upper Division Clerk। मतलब हैसियत और शख्सियत – दोनों से मध्यम वर्गीय। 

 

उस दिन, गौरी-महेश उसी कैफै कॉफी डे में बैठे कॉफी पी रहे थे, जब किसी कारणवश महेश के पिताजी का वहाँ आना हुआ। आ कर वे एक महिला के ठीक सामने बैठे। कुछ देर इधर उधर देखा। महेश की उनकी ओर पीठ थी। इसलिए बाप बेटा एक दूसरे को नहीं देख पाए। जब अंकल ने देखा कि सब ठीक ठाक है, तो धीरे से मुस्कुराये। आंटी का हाथ, जो टेबल पर उनके हाथ की बाट जोह रहा था, उन्होंने धीरे से थाम लिया। फिर वे दोनों धीरे धीरे बातें करने लगे।

महेश ने यह सब नहीं देखा था। पर गौरी देख रही थी।

उसने महेश से उसी समय वादा लिया कि आज के आज वह अपने घर में बात करेगा और कल – परसों में अपने माता पिता को रिश्ता ले कर भेज देगा नहीं तो वह किसी और रिश्ते के लिए हाँ कर देगी।

महेश इस अचानक वार से हतप्रभ था। पर इसकी अवश्यंभाविता को वह समझ गया था।

उसी समय घर पहुंचा। पिताजी अभी घर नहीं आए थे। महेश ने माँ को अकेला पा कर धीरे से उन से बात की। माँ ने घर खानदान का पूछा। महेश को कुछ पता न था। बस इतना भर कि जीजाजी की मौसेरी बहन है।

माँ अब परेशान। बेटी के भावी ससुराल में फोन कर के खानदान की जांच परख कैसे करें। बेटा तो दो दिन रुकने को तैयार नहीं है। पति हैं कि पता नहीं कहाँ गायब हैं।

पिताजी रात को आठ बजे घर पहुंचे। माताजी ने किसी तरह उन्हें चाय दी और उसी समय रामायण खोल कर बैठ गईं। पिताजी गौरी जी के पिता को जानते थे। उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी।

उसी समय महेश की दीदी ने अपने “उन” को फोन लगाया और बात बताई। साथ ही गौरी जी का अल्टीमेटम भी सुना दिया – कि १-२ दिन में रिश्ता ले कर जाना है।

अब जीजाजी फंसे।

घर पर माता पिता से कहते हैं, तो रिश्ता स्वीकार होने की कोई गुंजाइश नहीं। उल्टा ऐसे लुच्चे लड़के की बहन को उनके घर में लाया जाए या नहीं, इस पर भी विचार शुरू हो जाएगा।

उन्होंने दबे शब्दों में दीदी से कहा कि बात उनकी शादी तक टल जाए, तो अच्छा रहेगा।

महेश ने ये बात गौरी जी से कही, पर गौरी जी ने अपनी deadline नहीं बदली। १-२ दिन मतलब १-२ दिन। (उसे डर था कि महेश के पिता के प्रेम प्रसंग की बात अगर निकल गई, तो रिश्ता होगा ही नहीं)

अब क्या किया जाए? घर के चारों सदस्य बैठे। दीदी ने अपनी परेशानी बताई और महेश ने अपनी।

पिताजी ने ज़ोर का ठहाका लगाया। किसी को इसकी आशा नहीं थी। पिताजी शांत, सोबर किस्म के आदमी थे। आसानी से डरने वाले।

फिर वे बोले, “ फिकर न करो। अभी सब ठीक कर के आता हूँ।“ ऐसा कह कर वे रात के ९ बजे घर से निकले। अब छोटे शहरों में रात के ९ बजे लोग घर में होते हैं और बाजार आदि में... आप समझ गए कौन होते हैं।

पिताजी ९ बजे निकले तो १०:३० बजे लौटे। मोबाईल भी नहीं उठा रहे थे। माँ तो डर के मारे बेहाल!

पिताजी ने आते ही घोषणा की – घंटा भर रुको, बताता हूँ।

घंटा बीता। कोई नहीं सोया। उसके ऊपर भी ५ मिनट हो गए। पिताजी बस अपना फोन देखते जा रहे थे। कह कुछ नहीं रहे थे। माँ ने सोने की तैयारी शुरू की। जब चादरें बिछ चुकीं, तब पिताजी अपने कमरे से निकले – “परसों नेग ले कर जाना है, बस शगुन कर के लड़की रोक लेंगे। अगले हफ्ते सगाई कर देंगे। जैसा तुम्हारी बहु चाहती है, वैसा ही होगा। ब्याह भी जल्दी ही कर लेना। अब रुकने से क्या फायदा! तुम दोनों राज़ी हो, तुम्हारी नौकरी लगी है, लड़की भी final year में है।“

हम जैसे निठ्ठले दोस्त और हर समय कोसे जाते हैं, पर शादी के समय सबसे ज़्यादा काम बेरोजगार दोस्त ही करते हैं, इस बात का इतिहास गवाह है।

सगाई हुई, शादी भी हो गई।

पर मैं भी तो कवि हूँ। इस कहानी का सब से गूढ रहस्य सब से छुपा रहा था – मुझ से नहीं – आखिर गौरी जी के पिताजी ने हाँ कर कैसे दी, वह भी एक ही शाम में? एक ही शाम में दोनों माता पिता को प्रेम विवाह के प्रकरण में मना लेना चमत्कार था, Guinness का रिकार्ड था! और वह राज़ था, जिसका खुलना ज़रूरी था।

गुत्थी की चाबी थी महेश के पिता के पास। तो, हम लोगों ने दूल्हे को honeymoon पर विदा वगैरह करा कर, एक दिन अंकल को धर लिया। सोम रस का पान कराया गया, धर्मभीरु आत्मा में से धर्म का भय निकाला गया, और फिर, जब लोहा गरम हुआ, तब चोट की गई – उन से गौरी जी के पिता के मानने का रहस्य पूछा गया।

“वो क्या बताऊँ बेटा.. तुम लोग भी अब जवान हो, सब समझते हो। वो, ठेकेदार साहब की जो ‘वो’ हैं न, उनके बारे में मैं तो जानता हूँ, भाभी जी नहीं जानती हैं। उन्हें लगता है कि मेरा पति घूस देता है, सिमेन्ट में रेत मिलाता है, पर पराई स्त्री को कभी बुरी नज़र से नहीं देखता।

अब बात ये है कि ठेकेदारी के कारोबार में जितना पैसा लगा है, वह भाभीजी के मायके का है।  

तो मैंने उन से कहा, समधी बन जाते हैं, घर की बात घर में ही रहे, तो अच्छा है।

समझदार तो वे हैं ही, फौरन मान गए।“

मैंने कहा था न, कभी गहरी से गहरी कविता भी यथार्थ की जटिलता के सामने उथली लगती है।

 

पुराने प्रेम के नाम

 तेरी याद,

मेरे जोड़ों की पीड़ है जाना

 

हड्डियों में बसी रहती है।

सर्द मौसम में

अपने आप निकल आती है.



Folk Songs at a Punjabi Wedding




That a Punjabi wedding is a music and dance riot is hardly news. Apparently, wherever you turn in a Punjabi wedding, there is music and dance to be had. 

But over a period of time, I became aware that much of the diversity of this unique cultural heritage is vanishing. 

So, it is time to record the various types of folk songs that make up the cultural extravaganza that is a Punjabi wedding. 

There are apparently special songs for Roka and Mangni. 

How Weddings Got Fixed 

Traditionally, the father of the groom seeks the girl's hand for his son from the father of the bride. The father of the bride never does the opposite - of requesting an alliance directly from the father of the groom. 

But in practice, usually, it was the nais (नाई )  barbers, or Pundits, who kept an eye out for young girls and boys of marriageable age. They suggested these rishtas (relationships) to the parents or grandparents of the young people. 

Also, until the 1940s, young people did not see each other until after the marriage, so the Munh Dikhai - the time when the groom's family sees the girl's face for the first time, was a very big deal. 

To the Songs.. 

Maiyaan / माइयाँ पाना - Maiyaan de geet 

ये रस्म शादी से ४-६ दिन पहले की जाती थी। इस के बाद दूल्हा-दुल्हन अपने घर से निकल नहीं सकते थे। इस समय, उन से कोई काम नहीं कराया जाता था। उन्हें पुराने कपड़े पहन कर घर पर बैठना पड़ता था। 

इस से दोनों को आराम करने का समय मिलता था। शादी के बाद अमूमन बहुत थकान हो जाती है। 
पुराने कपड़े पहनने से नज़र नहीं लगती, और घर के अंदर रहने से सुरक्षा बनी रहती है। 

Maiyaan paana is the first tradition related to a wedding. 
On this day, the bride and groom wear old clothes and are, from this point on, not allowed to do any work or leave the house. 
This typically happens 4-6 days before a wedding. 

Maiyaan de geet are songs sung at this time. 

Here are some Maiyaan songs: 

https://www.youtube.com/watch?v=dNPOqcVBxPg

https://www.youtube.com/watch?v=HHwGUkTbzmM

https://www.youtube.com/watch?v=afTT7RL4jPU

Jaago 

After this, every morning, Jaago go around the village, with a lantern, waking people up. Jaago is the song sung by these Jaagos. Usually, they are village women. Jaagna means to wake up. 

Jaago: 

https://www.youtube.com/watch?v=9z_ue-bHAzQ

https://www.youtube.com/watch?v=RYypgXpmbhg

This is a Jaago by Surinder Kaur ji: 

https://www.youtube.com/watch?v=k-6gUvEKO84

This is the Jaago being done by a family: 

https://www.youtube.com/watch?v=ZUoZyiutNw4

This is a Jaago song from a 2013 song: 

https://www.youtube.com/watch?v=1Dlcb6-R9wY


Malkit Singh's Jaago: 

https://www.youtube.com/watch?v=RYypgXpmbhg


A rare Jaago from the boy's house: (its from a film) 

https://www.youtube.com/watch?v=NTL0HntazJk


Sithniyaan te Swaang 

Usually, in the evening, it would be time for some gup shup and music. 

Swaang - is a kind of folk theater in which a relative dresses up and acts as a funny character. In the one that I have seen, it was a relative who has come to the wedding from the village and brought "things" for the bride and groom. She gave handkerchiefs as "suit pieces" etc. Swaang is done by both men and women and leads to much laughter. 

Sithniyaan, on the other hand, is a very specific type of folk song. 

At the wedding, the nanke (mother's side) and dadke (father's side) of the groom/bride meet and there is a competition on who is more enthusiastic about the wedding. Also, general insults are thrown at the other side about their mannerisms, actions etc. These gaalis between the Nanke and Dadke are called Sithniyaan. They get super creative and super funny. 

Sithniyaan and other boliyaan of Sangeet: 

https://www.youtube.com/watch?v=ajX4AkW4Bc8 - from a Toronto wedding 

https://www.youtube.com/watch?v=yBgRfPUvsRE - 

https://www.youtube.com/watch?v=9qABiFUYSMI

This is your dance challenge

https://www.youtube.com/watch?v=AT7C2mVIzTU

Malkit Singh's version is my favourite. 


Sangeet Ceremony: Boliyaan, Tappe, Gidda 

Boliyaan, Tappe, Gidda, and Bhangra were the songs (Boliyaan, Tappe), and dances (Gidda, Bhangra) performed on the Sangeet ceremony. 

One special type of bolis are the kind where each relative is called by turns. Here is an example: 
https://www.youtube.com/watch?v=HcKGUZKBhY0

And another: https://www.youtube.com/watch?v=yBhdN2gKPvk

This song is usually a part of the Sangeet at the boy's side: 
Madho Rama Penchan: https://www.youtube.com/watch?v=ArHtJkgqeSU

Sangeet Songs: https://www.youtube.com/watch?v=0cG1pibBRH0

More Bolis: https://www.youtube.com/watch?v=LZRNj4vqNxY

Suhaag , Ghodi 

Suhaag is the wedding song for girl's side. Ghodi is a wedding song for the groom's side. 5 suhaag and 5 ghodis started off the sangeet ceremony. The dancing started after the Suhaags, Ghodis, and other songs. 
Suhaag and Ghodi are not accompanied by any dancing. 
Some of the famous Suhaags and Ghodis are: 

Suhaags typically talk about the life of the girl after marriage - largely sad. Ghodis are happy songs because they talk about the new member joining the family. 

Suhaags: 

https://www.youtube.com/watch?v=1wGJtuFAv6k

Madhaniyaan: https://www.youtube.com/watch?v=jhWsUkPxMps

Bibi Chandan de ole ole: https://www.youtube.com/watch?v=FRqLtWa0Hos

Fullaan di bahaar: https://www.youtube.com/watch?v=6GKTdSI3ZKU

Chitta Kukkad Banere te: https://www.youtube.com/watch?v=EiRDDGt4Fu0

Ajj di dihari rakh Doli: https://www.youtube.com/watch?v=9l-2RJh8-fk

Niki niki boond: https://www.youtube.com/watch?v=Noyo6ELBeUo

Aaya Ladiye ni tera Sehrayaan vala: https://www.youtube.com/watch?v=ceyvjobiU1g



Ghodiyaan: 

By far the MOST popular Ghodi in Punjab is: 

Matthe te chamkan vaal mere Bande de: https://www.youtube.com/watch?v=a7AofNXdKxk

Jado lagiyaan veera tainu maiyaan: https://www.youtube.com/watch?v=bdyTMauKVOs

Another version: https://www.youtube.com/watch?v=2J5yAHJ_utk

https://www.youtube.com/watch?v=qHn0g7vsIOM

Surjana: https://www.youtube.com/watch?v=Pw1DONgJE6g

Veda Bharya Shagnaan da: https://www.youtube.com/watch?v=4I9BMaHdnFw

Gaun 

Gauns are just songs that are sung at weddings. 

Kala Doria: https://www.youtube.com/watch?v=t1w4vU-BmOs

This one was my grandma's favourite song:  
Sadke Sadke jaande mutiyaare ni: https://www.youtube.com/watch?v=YQaKoITbxCs

Jutti kasuri: https://www.youtube.com/watch?v=PY3HNYhK5Oc
Harshdeep Kaur version: https://www.youtube.com/watch?v=WhrRxtJaJsM

Latthe di chadar: https://www.youtube.com/watch?v=tFMxhu-n0sA

Baajre da sitta: https://www.youtube.com/watch?v=Oy-cNCWOXgw

Nai jaana: https://www.youtube.com/watch?v=nE0vCcnk1H0 (these are Tappe) 

Ghadoli 

These are songs sung when the bhabhi goes to the well neaby to get water. 

Though after the original Ghadoli, regular bolis and tappe take over and people just dance. 

This water is then used to bathe the bride/groom. After this the singaar for the wedding begins for both sides.  

Earlier, this bath used to end "Maiyaan" but now, the maiyaan ends before Haldi, which is usually just before the sangeet. 

https://www.youtube.com/watch?v=EJhDBWtfreU

This is the Harshdeep kaur version: https://www.youtube.com/watch?v=OirACRebqZw

The bhabhi who brings the ghadoli and other bhabhis are all given gifts at this time. 


Sehrabandi

Sehrabandi - the tying of the Sehra, to the groom, is done the night before the wedding. The groom is then expected to keep the Sehra on all night and proceed to the wedding venue in the morning. 

This is an old song to be sung at the time of Sehra bandi: 
https://www.youtube.com/watch?v=Na5QK1BDnpw


Milni 

These songs are sung at the time of the Milni (meeting) of the relatives of the two sides. 
Typically, they would only meet at the wedding. 

https://www.youtube.com/watch?v=Lcr6RilJ7Lw

Sehra 

The Sehra is sung when the Baraat enters the venue. 
It is sung by a friend of the groom, his father, brother, sister, etc. 

https://www.youtube.com/watch?v=TpWeJ2Zeu3U

Chhand 

The groom sings Chhand right after the pheras. 

Chhand is the same as Hindi छंद - a 4 line piece of poetry. 

https://www.youtube.com/watch?v=PtMnUvJHUBA

After the pheras, the groom sings Chhand, the groom's mother gives kalicharis to the salis of the groom, and then the joote chhupai money is also given, and the groom's shoes are returned. 


Sikhya 

Sikhya was given to the girl by her family just after the pheras, before Doli.  
Sikhya was meant to teach the girl to adjust at her in laws place. 
It could be sung by the bride's mother, grandmother, sisters, or friends. 

I found one example of Sikhya from a recent film. 
https://www.youtube.com/watch?v=tmCqUMLG0wk

This one is nice: https://www.youtube.com/watch?v=hkC5LERBbNs


Doli 

The best known Doli song is 
Sadda Chidiyaan da Chamba oye..

Here it is in the voice of Mussarat Nazir, one of the best known Punjabi folk singers: 
https://www.youtube.com/watch?v=DdTIJf6fQF0

And by Runa Laila: 
https://www.youtube.com/watch?v=4zrTStvStsE

The remarkable thing

is that all the 3 major religions of Punjab - Sikhism, Hinduism, and Islam, follow the exact same traditions. Only the main wedding ceremony varies by religion. 

By the way, did you count how many there were? 
16 different types of songs are sung in the Punjabi wedding! 

End note:
https://www.youtube.com/watch?v=4yCBVLAE0OQ
This video has links to many traditional songs of Punjab. 

Wednesday, December 21, 2022

Film Review: Nazar Andaz

The retro poster is intriguing but does no justice to the sheer brilliance of the film.



Kumud Mishra..where were u till now? The Nation Wants to Know!
Divya Dutta has been a complete bombshell of talent even if she is on the screen for just 2 minutes. This movie is no different and for once she has a role that does justice to that talent.
Rajeshwari Sachdev has a short and beautiful role. I am a diehard fan anyway.
Abhishek Bannerjee was in stellar company, and he held his own quite remarkably.

The thing that absolutely pops your mind is this - I have worked with this sector for more than 2 decades. These mannerisms of gently avoiding the sun, turning the face in a certain way, these micro expressions.. these cannot be copied. They are very natural, and when an actor is trying to copy the mannerisms of a character that can't see, the squinting of the eyelids and the turning of the face will not occur to them. At least, i have not seen it in any movie so far - EVER. Not even in the iconic Sparsh - the original film that set the direction of my life.

The second thing that gets your attention - wide eyed attention, is the cinematography of the climax shot. You cannot take your eyes off the screen for even 10 seconds.

The third thing that merits mention is the dialogues, music, and lyrics. They make up the audio element of the story and blend effortlessly - both with the story and with each other.

The final feather in the cap of the film is that Sindhi - Gujarati dialect used in the film. Such a wonderful, refreshing dialect. Does anyone know where it is used in India?

Watching this movie made me realise what happens when you put real actors on screen and let them work their magic. Good cinema is not a figment of our imagination. Good storytelling is not a myth.

Tuesday, December 20, 2022

Thoughts from Meditation

कभी सोचा है, कि संतों के नाम के पीछे आनंद क्यूँ लगता है? विवेकानंद? परमानंद? रामानन्द? 

क्योंकि ध्यान, साधना से आगे जो है, सो आनंद है। 

एक समय के बाद, सब कुछ सहज हो जाता है। सब कुछ प्रेम से  ओत-प्रोत हो जाता है। 

तब जो अनुभूति होती है, वह केवल आनंद ही है। 

उस स्थान पर पहुंचना कुछ कुछ एवरेस्ट के शीर्ष पर पहुँचने जैसा है - वो ऐसे कि इस के ऊपर जाने के लिए कुछ नहीं है। इस लिए नहीं कि मार्ग नहीं है - बल्कि इसलिए कि महत्वाकांक्षा ही नहीं है। 

वहाँ से ऊपर कुछ नहीं है, तो वहाँ से नीचे भी कुछ नहीं है। जो आनंद को प्राप्त होता है, उसे तृप्ति मिलती है। और जिस में तृप्ति है, उस में किस चीज़ की पिपासा? क्या यत्न? किस प्रयोजन से? 

ध्यान साधना बनता है, साधना बनती है मुक्ति। पर मुक्ति  की परिभाषा क्या है? धरती पर, मुक्ति का संकेत है, लालसा की अनुपस्थिति - तृप्ति का बोध। 

यह तृप्ति देती है आनंद। इस तृप्ति से जिस सुख की अनुभूति होती है, वह है आनंद। 

आनंद से आगे कुछ नहीं है। इसलिए, जिस व्यक्ति को बुद्धत्व की प्राप्ति हो जाती है, उसके नाम के पीछे धरती का कोई मार्का कोई मानी नहीं रखता - न उसके पिता का नाम, न प्रदेश का, न जाति का। उसकी पहचान बन जाता है, केवल वह आनंद, जो उसकी उपस्थिति में अनुभव होता है। 


Have you ever wondered why the names of saints in India end with Anand? Vivekananda? Ramananda? 

It is because Ananda is the end of the spiritual journey. 

Let me explain. 

Dhyana (Focus) leads to Sadhna (the disciplined pursuit of a goal). 

Sadhana, in turn, leads to mukti (Freedom). 

But, how do we experience Mukti in this world? 

On Earth, Mukti is the absence of attachment, the absence of desire. 

The absence of desire, we also know as contentment, a state of peace in which there is absolute completeness. Nothing is amiss. Nothing is in the wrong place. Everything is exactly as it should be. 

That state is called Ananda - joy. 

It cannot be described or explained as well as it can be experienced. 

It is at this point that one feels that one has "come home". It marks the end of pursuit and the beginning of eternal bliss and joy in what one has. 


Saturday, December 17, 2022

Word of the Year

 Levament - Definition - “The comfort which one hath of his wife.” (Henry Cockeram, The English Dictionarie, 1623)

Reference here: https://www.merriam-webster.com/words-at-play/top-13-words-with-bizarre-meanings


Thursday, December 15, 2022

सुशांत सिंह राजपूत के नाम - २.५ साल हुए तुम्हें गए / For Sushant Singh Rajput - 2.5 years since you left

तुम चाँद लाना सखी 

मैं सूरज लाऊँगी 

तारे सरला ले आएगी 

धूमकेतु का इंतेज़ाम 

शर्मा जी कर देंगे। 

उल्का अलका लाएगी 

ग्रह-व्रह सब रहने दो, 

क्या करना है इतने सब का! 


नया साल आने वाला है 

नया आकाश सजाएंगे। 


एक फोटोन है 

डबल स्लिट जैसी किसी जगह  में अटका हुआ 

उसे छुड़ा ले आएंगे 

सबसे बीच में, सखी, 

उस सपने देखने वाले# 

फोटोन को ही लगाएंगे।। 


- कि दुनिया का केन्द्रबिन्दु 

सपने ही हैं। 

*Photon in a Double Slit is Sushant Singh Rajput's description of self on Twitter. 

#Sushant Singh had listed 50 dreams for himself. 



This poem is inspired by this art, shared by a friend on LinkedIn: 



 English translation: 

You bring the sun, 

I will bring the Moon 

The stars are for Mrs. Jones 

Mr. Smith 

will arrange a comet 

and Minnie 

will get the meteor 

We don't need the planets 

Too much hotch-potch, I say! 


Its New Year Eve! 

Time to build a new sky! 


There is a photon 

stuck in a double slit 

We will free him up too 

And put him centerstage 

For the world, my friend, 

Belongs to those who dream. 



Saturday, December 10, 2022

On Judicial Reform in India

 So, this is disturbing me a lot.

Yesterday, I was forced to encounter 2 pieces of news. I slept over them because usually, that which boils the blood in the evening doesn't even heat the water by morning. But not this time. The 2 things were:

A. A democratically elected government passes an Act on Judicial Appointments that make these appointments non-collegium based. The judiciary single handedly scraps this law. There is no check and balance on this action.

B. This:
https://www.opindia.com/2022/12/sc-stays-death-sentence-of-m-samivel-who-raped-and-brutally-killed-a-minor-girl-in-tamil-nadu-in-2020/
The death sentence was given by not one but TWO subordinate courts under the same Supreme Court. The crime was heinous and proved.

The trouble is, these are not isolated data points. Before this, the SC undermined the death threat to Nupur Sharma and also publicly humiliated her in court, making completely unjustified remarks. Then, they jumped into the CEC appointment, forgetting that they are themselves under a very nepotistic, subject-to-flattery collegium system.

Here are some things that I am not able to get over:
A. The Constitution provides for a system of checks and balances for the Legislature and the Executive, but NONE for the judiciary.
B. In a Brut video of the Hon. President Smt. Draupadi Murmu, she asks, very rightly, "You ask us to make more jails to house more undertrials. But what we need is speedy dispensation of justice, not more undertrials. Why are they under trial after years?"
C. In as much as I could read, there is no performance criteria for a judge other than being favoured by the senior judges. Their record of speedy dispensation of justice, ensuring that people do not abuse the judicial process, even the quality of their judgements, amounts to nothing - because of the Collegium system. These contractors of meritocracy still appoint the CJI on the basis of one thing only - seniority!

And all I can think of, as citizens, do we not have a right to ask for Judicial Reform? Isn't that the right of every litigant, and every citizen of India? To correct an institution that is not, and has not, been working effectively, for many decades now?

What judicial reforms, if any, would you like, as a citizen of India? I really would like more inputs and insights.

Friday, December 09, 2022

TV review: Ancient Apocalypse

 This is a docuseries.


If history is your thing, you already know that there are many megalithic architectural structures for which historians have no explanation.
If history is not your thing, you have at least heard of the pyramids in Egypt.

This docuseries does one thing brilliantly - it brings all those disparate, scattered pieces of evidence together and ties them up in a timeline that is credible.

The reason historians have been able to sidestep the questions raised by these megaliths is that the questions were asked one at a time - What about the Chichen Itza? What about the Nazca lines? What about the pyramids? But when you put ALL the data points on the table and ask ALL the questions together, they become very uncomfortable questions to avoid.

What it does not do so well is subtlety and sticking to the core of facts above analysis. Each data point is coated with some hypotheses and at some places, data points appear to be force-fitted to suit the hypothesis.
The other thing it does not do well is providing exhaustive information. The Denisovas, which, imho, form a very important piece of the puzzle, are entirely left out. The Nazca lines are untouched even though they are one of the best researched unexplained archeological features. I will not list the smaller data points that are omitted - we can chalk those down to time constraints. These are the two glaring misses in content.
If you are a history person, this docuseries will leave you with some additional, relevant information, and a slight discomfort with the pushiness of the host. The hypothesis is probable - at most. One might want to pursue it, but one is equally likely to file it as one of the many hypotheses already shared by those who care.

If you are not a history person, the series will truly open your eyes to a LOT of new information. What to do with that information, is entirely up to you.
Like all well-funded docuseries, it is well made, well-shot, well-edited. The technicals are all in place.