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मरीचिका का सम्मोहन ही है जो यात्रा को सहनीय बनाता है ध्येय अंतिम पड़ाव की निस्तब्धता नहीं, अपितु यात्रा का आवेग है फिर चाहे उसकी अभिप्रेरणा, तृष्णा हो या मृग-तृष्णा।
Hi HT: ध्येय अंतिम पड़ाव की निस्तब्धता नहीं, अपितु यात्रा का आवेग है फिर चाहे उसकी अभिप्रेरणा, तृष्णा हो या मृग-तृष्णा। - Pranam!!
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मरीचिका का सम्मोहन ही है जो यात्रा को सहनीय बनाता है
ध्येय अंतिम पड़ाव की निस्तब्धता नहीं, अपितु यात्रा का आवेग है
फिर चाहे उसकी अभिप्रेरणा, तृष्णा हो या मृग-तृष्णा।
Hi HT:
ध्येय अंतिम पड़ाव की निस्तब्धता नहीं, अपितु यात्रा का आवेग है
फिर चाहे उसकी अभिप्रेरणा, तृष्णा हो या मृग-तृष्णा।
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