Wednesday, May 21, 2025

Ashar from the poetry group

 मंज़िलें क्या बताएँ मैं क्या हूँ

ज़िंदगी का उदास रस्ता हूँ


काम आई न कुछ शनासाई

शहर की भीड़ में अकेला हूँ


ख़ार-ओ-ख़स ही सही मगर यारो

मैं भी सहन-ए-चमन का हिस्सा हूँ


आप अपनी सुनाइए 'मासूम'

मेरी क्या पूछते हैं अच्छा हूँ


~ मासूम शर्क़ी


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There is a song in a Hindi film that is also a ghazal: 

यूं हसरतों के दाग मुहब्बत में धो लिए 

खुद दिल से दिल की बात कही, और रो दिए 

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And a Ghalib sher that comes to mind: 

कब से हूँ क्या बताऊँ जहां-ने-खराब में 

शब और हिज्र को भी रखूँ गर हिसाब में 

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2 comments:

Anita said...

सुंदर शायरी

How do we know said...

धन्यवाद!