मंज़िलें क्या बताएँ मैं क्या हूँ
ज़िंदगी का उदास रस्ता हूँ
काम आई न कुछ शनासाई
शहर की भीड़ में अकेला हूँ
ख़ार-ओ-ख़स ही सही मगर यारो
मैं भी सहन-ए-चमन का हिस्सा हूँ
आप अपनी सुनाइए 'मासूम'
मेरी क्या पूछते हैं अच्छा हूँ
~ मासूम शर्क़ी
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There is a song in a Hindi film that is also a ghazal:
यूं हसरतों के दाग मुहब्बत में धो लिए
खुद दिल से दिल की बात कही, और रो दिए
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And a Ghalib sher that comes to mind:
कब से हूँ क्या बताऊँ जहां-ने-खराब में
शब और हिज्र को भी रखूँ गर हिसाब में
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2 comments:
सुंदर शायरी
धन्यवाद!
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