बहुत अजीब सी किताब है।
न लेखक परिचय है, ना आलेख!
इतनी उम्दा कविता!!!
पता नहीं आपको कहाँ मिलेगी।
पर ये पंक्तियाँ मैं यहीं सांझा कर देती हूँ:
सपने
कुछ मेरी पहुँच के पार जान पड़ते हैं
कुछ हैं जो अभी पूरे किये जा सकते हैं
कुछ तो इबादत से हासिल हुआ करते हैं
कुछ जो बाज़ार से खरीदे जा सकते हैं
मेरे विश्वास की खुराक थे ये सपने
इन्हीं से थोड़ी बहुत हिम्मत बरकरार थी
दुनिया मेरे सामने अखबार पढ़ती रही
और मैं शायरी सुनाता रहा
नफे नुकसान की परवाह न की
250 का ख्वाब था 15 में लगाया
चाय के दो प्याले और एक केतली हैं मेज़ पर
और इंतज़ार है किसी की जागने का
कोई है जिसे अपनी नींद बहुत प्यारी है
और मैं आराम की बहुत इज़्ज़त करता हूँ
बहुत से टूटे हैं हकीकत से टकराकर
बहुत से लूटे हैं मुकद्दर ने आ कर
बहुत से छोड़ गए होश में आने पर
बहुत से गिर पड़े परदे उठाने पर
जब कभी जीना बेवजह सा लगता है
तब मेरे सपनों की अफीम काम आती है
पाँच सात सपनों को गोल मोल कर के
हौसला सा एक तय्यार हो जाता है
सपनों में सब मेरी मर्ज़ी के मुताबिक था
लेकिन मेरी मर्ज़ी इतनी सयानी ना थी।
सबने कहा ये भरोसा नहीं पागलपन है
भाग दौड़ करते हुए सपने ही सच होते हैं
मैंने कहा नहीं ऐसे भी इंसान हैं
जो छाते को खोल दें तो बारिश होने लगती है
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कुछ ना होगा इस कदर किश्तों पर जीने से
दिल वालों को ज़िंदगी नसीब हुआ करती है
सागर खत्म नहीं होते घूंट घूंट पीने से
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मैं प्यार हूँ
मैं होता हूँ, मुझे किया नहीं जाता
मैं लाज़मी हूँ, हर इत्मीनान के लिए
मैं सबसे अहम हिस्सा हूँ हर एक तस्सली का
मैं बहता हूँ, हर इख्तियार की नसों में
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बेबसी की हवा का नाम शायद भूत हो
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किसका था कितना कसूर आखिर तक न तय हुआ
आरज़ू मुजरिम हुई तकदीर सब कुछ सह गई
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तजुर्बा कहाँ मिलता है उधार किसी को
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