Sunday, February 02, 2025

Urdu poetry from the old diary

 कुछ ग़म मेरे दिल से सम्हाले नहीं जाते 

आँसू भी उन्हें साथ बहा ले नहीं जाते 


ग़म हो के खुशी आँखों में आ जाते हैं आँसू 

दुख सुख में मेरे चाहने वाले नहीं जाते 


ये वक़्त फक्त पाँव के छालों का हैं मरहम 

पड़ जाते हैं जो दिल में वो छाले नहीं जाते 


एक वक़्त था, पी जाता था सौ ग़म के समंदर 

दो अश्क भी अब मुझ से सम्हाले नहीं जाते 

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मेरा दिल है और आपकी याद है, 

ये घर आज कितना आबाद है 

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काश ऐसा तालमेल सकूत व सदा में हो 

 उसको पुकारूँ तो उसी को सुनाई दे 

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शहर में तो रुखसती दहलीज़ तक महदूद है 

गाँव में पक्की सड़क तक लोग पहुंचाने गए 

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तेरे पास आ के हँसाऊँगा तुझे लेकिन 

जाते-जाते तेरे दामन को भिगो जाऊंगा 

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And one new one from the poetry group: 

मुँह ज़बानी न जताता कि मोहब्बत क्या है

मैं तुझे कर के दिखाता कि मोहब्बत क्या है


कैसे सीने से लगाऊँ कि किसी और के हो

मेरे होते तो बताता कि मोहब्बत क्या है


ख़ूब समझाता तुझे तेरी मिसालें दे कर

काश तू पूछने आता कि मोहब्बत क्या है

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I have no idea who the poets are. If you do know, pls comment and I will add.