Thursday, February 20, 2025

मेला - शरद कोकास

मेले की भीड़ में डरता है अकेलापन 

काँपता है 

कहीं कोई दबोच न ले 

कर न बैठे कोई कटाक्ष 

दुबक जाता है किसी कोने में 


फिर भी 

हार नहीं मानता अकेलापन I


Too good a poem to not share. 


No comments: