Monday, October 01, 2018

Siddhi

एक दैत्य था. उस ने विष्णु जी बड़ी तपस्या की. अंत में विष्णु जी प्रकट हुए और उस से वर मांगने को कहा. दैत्य लालची था. उसने कहा, "भगवन, मुझे वह सिद्धि दीजिये, जो सारी दुनिया में किसी के पास न हो. विष्णु जी ने उस से सोचने के लिए कुछ समय माँगा. वापिस आ कर देवताओं से मंत्रणा करने लगे. 


अंत में, जैसा कि प्राय: होता है, नारद मुनि ने हल बताया - भगवन, उसे अज्ञान की सिद्धि दीजिये. उसे अपने घरवालों की बात हमेशा बुरी लगे, और बाहर वालों की भली. अपने हितैषियों का परामर्श बुरा लगे, और चापलूसों की झूठी तारीफ भली. 


उसे हर भली चीज़ बुरी लगे, और बुरी चीज़ भली. उसे अच्छाई नहीं, चमकीली सुंदरता पसंद हो.  


ऐसा वरदान उसे दीजिये प्रभु. उसे वह सिद्धि दीजिये, जो किसी के पास नहीं है - अपने हित को अहित , और अहित को हित माने. 


अपने अज्ञान से वह स्वयं ही अपना सर्वनाश कर लेगा. उसे क्षणिक सफलता मिलेगी, परन्तु अंतत:, उसका जीवन असाध्य हो जायेगा.


विष्णु भगवन ने अपने भक्त के साथ छल किया, और उसे वही अज्ञान की सिद्धि दी.


मैंने सुना है, कि उस दैत्य के बहुत वंशज हुए. अपने आस पास के चापलूसों के मत से, उसने अपने सभी हितैषियों से सम्बन्ध तोड़ दिए. 


मैंने सुना है, कि आज उस दैत्य के वंशज, सारी धरती पर बहुतायत में घुमते हैं. 


5 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 02 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

How do we know said...

Yashoda ji.. ye shayad pehli baar hai ki meri koi Rachna Hindi blog links ke liye chuni gayi hai.. hriday se aabhaar! Blog bahut achha hai!

सुशील कुमार जोशी said...

बढ़िया :) शायद हम भी उन दैत्यों मे से एक हैं।

Sudha Devrani said...

बहुत बढिया...

How do we know said...

Sushil ji: Dhanyavaad. Hain. Isiliye ye likhi thi.

Sudha ji: Dhanyavaad.