मातादीन उन कारणों की जांच कर रहे थे जिनके कारण पुलिस लापरवाह और अलाल हो गयी है. वह अपराधों पर ध्यान नही देती. कोई कारण नही मिल रहा था. एकाएक उनकी बुद्धि में एक चमक आयी. उन्होने मुंशी से कहा, ज़रा तंख्वाह का रजिस्टर बताओ.
तंख्वाह का रजिस्टर देखा, तो सब समझ में आ गया. कारण पकड में आ गया.
शाम को उन्होने पुलिस मंत्री से कहा, मैं समझ गया कि आपकी पुलिस मुस्तैद क्युन नही है. आप इतनी बडी तंख्वाह देते हैं इस लिये. सिपाही को 500, हवलदार को 700, थानेदार को हज़ार, ये क्या मज़ाक है? आखिर पुलिस अपराधी को क्यूं पकडे?
हमारे यहां सिपाही को 100 और थानेदार को 200 देते हैं तो वो 24 घंटे जुर्म की तलाश करते हैं.. आप फौरन् तंख्वाहे घटाइये.
पुलिस मंत्री ने कहा, - मगर ये तो अन्याय होगा. अच्छा वेतन नही मिलेगा तो काम ही क्यों करेंगे?
मातादीन ने कहा, इस में कोई अन्याय नही है. आप देखेंगे की पहली घटी हुई तंख्वाह मिलते ही आप की पुलिस की मनोवृति में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जायेगा.
पुलिस मंत्री ने तंख्वाहे घटा दीं और 2-3 महीने में सचमुच बहुत फर्क आ गया. पुलिस एक दम मुस्तैद हो गयी. सोते से एक दम जाग गयी. चारों तरफ नज़र रखने लगी. अपराधियों की दुनिया में घबराहट मच गयी. पुलिस मंत्री ने तमाम थानों के record बुलवाकर देखे. पहले से कई गुना ज़्यादा केस register हुए थे. उन्होने मातादीन को बुलाकर कहा, - मैं आपकी सूझ की तरीफ करता हों, आप ने क्रांति कर दी. पर ये हुआ किस तरह?
मातादीन ने समझाया – बात बहुत मामूली है. कम तंख्वाह दोगे, तो मुलाज़िम कि गुज़र नही होगी. 100 रुपये में सिपाही बच्चों को नही पाल सकता. उसे ऊपरी आमदनी करनी ही पडेगी. और ऊपरी आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को पकडेगा. गरज़ ये कि वो अपराधों पर नज़र रखेगा. हमारे राम राज के स्वच्छ और सक्षम प्रशासन का यही रहस्य है.
चन्द्रलोक में इस चमत्कारण की खबर फैल गयी. लोग मातादीन को देखने आने लगे कि वह आदमी कैसा है जो तंख्वाह कम कर के सक्षमता ला देता है. पुलिस के लोग भी खुश थे. बोलते – गुरू, आप इधर ना पधारते तो हम सब कोरी तंख्वाह से ही गुज़र करते रहे. सरकार भी खुश थी कि मुनाफे का बजट बनने वाला था.
आधी समस्या हल हो गयी. पुलिस अपराधी पकडने लगी थी. अब मामले की जांच विधि में सुधार करना रह गया था.
This is a random personal blog - covering everything from poetry to politics. Views presented are strictly my own.
Sunday, January 28, 2007
Friday, January 26, 2007
इंसपेक्टर मातादीन चांद पर - III
अपने मातहतों से अंतिम सवाल जवाब करने के पश्चात, मातादीन ने हवलदार को तकीद की, "हमारे घर में जचकी के वक़्त अपनी पत्नी को मदद के लिये भेजी देना." हवल्दार बोला, "जी पेक्ट्सा!"
गफूर बोला, " आप बेफिक्र रहें पेक्ट्सा, मैं भी अपनी घरवाली को भेज दूंगा, खिदमत के लिये! "
मातादीन ने यान के चालक से पूछा, "ड्राइविंग लाइसेंस है?"
जी है साहब!
और गाडी में बत्ती ठीक है?
जी ठीक है.
मातादीन ने कहा, "सब ठीक ठाक होना चाहिये, नहीं तो हराम्ज़ादे को बीच अंतरिक्ष में चलान कर दूंगा. "
चांद से आये चालक ने कहा, "हमारे यहां आदमी से ऐसे बात नहीं करते. "
मातादीन ने कहा, "जानता हूं बे, तुम्हारी पुलिस कमज़ोर है. अभी मैं उसे ठीक करता हूँ. "
मातादीन यान में कदम रख ही रहे थे कि एक हवल्दार भागता हुआ आया. बोला, " पेक्ट्सा, एस. पी. साहब के घर में से कहे हैं कि चांद से ऐडी चमकाने वाला पत्थर लेते आना."
मातादीन खुश हुए. बोले, "कह देना बाई साहब से, ज़रूर लेता आऊंगा. "
वे यान में बैठे और यान उड चला. पृथ्वी के वायु मंडल से यान बाहर निकला ही था कि मातादीन ने चालक से कहा – अबे, हॉर्न क्यों नही बजाता?
चालक ने जवाब दिया, आस पास लाखों मील तक कुछ भी नही है.
मातादीन ने डांटा – मगर रूल इज़ रूल. हॉर्न बजाता चल.
चालक अंतरिक्ष में हॉर्न बजाता हुआ यान को चान्द पर ले आया.
अंतरिक्ष अडडे पर पुलिसकर्मी मातादीन के स्वागत के लिये खडे थे. मातादीन रोब से उतरे और उन अफ्सरों के कन्धों पर नज़र डाली. वहां किसी के स्टार नही थे. फीते भी किसी के नही लगे थे. लिहाज़ा मातादीन ने एडी मिलाना और हाथ उठाना ज़रूरी नही समझा.
मातादीन को वे लोग ले गये और एक अच्छे बंगले में उन्हें टिका दिया.
एक दिन आराम करने के बाद मातादीन ने काम शुरू किया. सबसे पहले उन्होने पुलिस लाईन का मुलाहिज़ा किया. शाम को उन्होने IG से कहा, आपके यहां पुलिस लाईन में हनुमान जी का मन्दिर नही है, हमारे राम राज में पुलिस लाईन में हनुमान जी हैं.
IG बोले, हनुमान जी कौन थे, हम नही जानते??
मातादीन ने कहा, हनुमान जी का दर्शन हर कर्तव्यपरायण पुलिसकर्मी के लिये ज़रूरी है. वे सुग्रीव के यहां special branch में थे. उन्होने सीता माता का पता लगाया था. Abduction का मामला था. दफा 362. हनुमान जी ने रवण को सज़ा वहीं दे दी. पुलिस को ये अधिकार होना चाहिये कि अपराधी को पकडा और सज़ा वहीं दे दी. मगर ये system हमारे राम राज में अभी शुरू नही हुआ.
हनुमान जी के काम से भगवान रामचंद्र बहुत खुश हुए. वे उन्हें अयोध्या ले आये.
वही हनुमान जी हमारे अराध्य देव हैं. मैं उनकी फोटो साथ लेता आया हूं. उस पर से मूर्ती बनवाइये और हर पुलिस लाईन में स्थापित करवाइये.
थोडे ही दिनों में चान्द की हर पुलिस लाईन में हनुमान जी स्थापित हो गये.
गफूर बोला, " आप बेफिक्र रहें पेक्ट्सा, मैं भी अपनी घरवाली को भेज दूंगा, खिदमत के लिये! "
मातादीन ने यान के चालक से पूछा, "ड्राइविंग लाइसेंस है?"
जी है साहब!
और गाडी में बत्ती ठीक है?
जी ठीक है.
मातादीन ने कहा, "सब ठीक ठाक होना चाहिये, नहीं तो हराम्ज़ादे को बीच अंतरिक्ष में चलान कर दूंगा. "
चांद से आये चालक ने कहा, "हमारे यहां आदमी से ऐसे बात नहीं करते. "
मातादीन ने कहा, "जानता हूं बे, तुम्हारी पुलिस कमज़ोर है. अभी मैं उसे ठीक करता हूँ. "
मातादीन यान में कदम रख ही रहे थे कि एक हवल्दार भागता हुआ आया. बोला, " पेक्ट्सा, एस. पी. साहब के घर में से कहे हैं कि चांद से ऐडी चमकाने वाला पत्थर लेते आना."
मातादीन खुश हुए. बोले, "कह देना बाई साहब से, ज़रूर लेता आऊंगा. "
वे यान में बैठे और यान उड चला. पृथ्वी के वायु मंडल से यान बाहर निकला ही था कि मातादीन ने चालक से कहा – अबे, हॉर्न क्यों नही बजाता?
चालक ने जवाब दिया, आस पास लाखों मील तक कुछ भी नही है.
मातादीन ने डांटा – मगर रूल इज़ रूल. हॉर्न बजाता चल.
चालक अंतरिक्ष में हॉर्न बजाता हुआ यान को चान्द पर ले आया.
अंतरिक्ष अडडे पर पुलिसकर्मी मातादीन के स्वागत के लिये खडे थे. मातादीन रोब से उतरे और उन अफ्सरों के कन्धों पर नज़र डाली. वहां किसी के स्टार नही थे. फीते भी किसी के नही लगे थे. लिहाज़ा मातादीन ने एडी मिलाना और हाथ उठाना ज़रूरी नही समझा.
मातादीन को वे लोग ले गये और एक अच्छे बंगले में उन्हें टिका दिया.
एक दिन आराम करने के बाद मातादीन ने काम शुरू किया. सबसे पहले उन्होने पुलिस लाईन का मुलाहिज़ा किया. शाम को उन्होने IG से कहा, आपके यहां पुलिस लाईन में हनुमान जी का मन्दिर नही है, हमारे राम राज में पुलिस लाईन में हनुमान जी हैं.
IG बोले, हनुमान जी कौन थे, हम नही जानते??
मातादीन ने कहा, हनुमान जी का दर्शन हर कर्तव्यपरायण पुलिसकर्मी के लिये ज़रूरी है. वे सुग्रीव के यहां special branch में थे. उन्होने सीता माता का पता लगाया था. Abduction का मामला था. दफा 362. हनुमान जी ने रवण को सज़ा वहीं दे दी. पुलिस को ये अधिकार होना चाहिये कि अपराधी को पकडा और सज़ा वहीं दे दी. मगर ये system हमारे राम राज में अभी शुरू नही हुआ.
हनुमान जी के काम से भगवान रामचंद्र बहुत खुश हुए. वे उन्हें अयोध्या ले आये.
वही हनुमान जी हमारे अराध्य देव हैं. मैं उनकी फोटो साथ लेता आया हूं. उस पर से मूर्ती बनवाइये और हर पुलिस लाईन में स्थापित करवाइये.
थोडे ही दिनों में चान्द की हर पुलिस लाईन में हनुमान जी स्थापित हो गये.
Thursday, January 25, 2007
इंसपेक्टर मातादीन चांद पर - II
पूछा जायेगा, इंसपेक्टर मातादीन चांद पर क्यों गये थे? टूरिस्ट की हैसियत से या किसी फरार अपराधी को पकड्ने? नहीं, वे भारत की तरफ से सांस्कृतिक आदान प्रदान के अंतर्गत गये थे. चांद सरकार ने भारत सर्कार को लिखा था, "यों हमारी संस्कृति और सभ्यता बहुत आगे बडी है. पर हमारी पुलिस में पर्याप्य क्षमता नही है. वह अपराधी का पता लगाने और उसे सज़ा दिलाने में अक्सर सफल नही होती. सुना है, आप के यहां राम्राज है, मेहर्बनी करके किसी पुलिस अफसर को भेजें जो हमारी पुलिस को शिक्षित कर दे.
गृहमंत्री ने सचिव से कहा, "किसी I.G. को भेज दो."
सचिव ने कहा – नहीं सर I.G. नहीं भेजा जा सकता. प्रोटोकोल का सवाल है. चांद हमारा एक क्षुद्र उपग्रह है. I.G. के रैंक के आदामी को नही भेजेंगे. किसी सीनिअर इंस्पक्टर को भेज देता हूं.
तय किया गया कि हज़ारों मामलों के इंवेस्टिगटिंग ओफिसर सीनिअर इंस्पक्टर मातादीन को भेजा जाये.
पुलिस मंत्री ने मातादीन को बुलाकर कहा, तुम भारतीय पुलिस की उज्ज्वल परम्परा के दूत की हैसियत से जा रहे हो. ऐसा काम करना कि सारे अंतरिक्ष में डिपार्टमेंट की ऐसी जै – जै कारण हो कि प्रधान मंत्री को भी सुनायी पड जाये.
चांद की सरकार को लिखना दिया गया कि आप मातादीन को लेने के लिये पृथ्वी यान भेज दें.
मातादीन की यात्रा का दिन आ गया. एक यान अंतरिक्ष अड्डे पर उतरा. मातादीन सब से विदा ले कर यान की ओर बढे. वे धीरे धीरे अपने ईश्टदेव को भी याद किये जाते थे.
अपने मातहतों से अंतिम सवाल जवाब करने के पश्चात, मातादीन ने हवलदार को तकीद की, "हमारे घर में जचकी के वक़्त अपनी पत्नी को मदद के लिये भेजी देना." हवल्दार बोला, "जी पेक्ट्सा!"
गृहमंत्री ने सचिव से कहा, "किसी I.G. को भेज दो."
सचिव ने कहा – नहीं सर I.G. नहीं भेजा जा सकता. प्रोटोकोल का सवाल है. चांद हमारा एक क्षुद्र उपग्रह है. I.G. के रैंक के आदामी को नही भेजेंगे. किसी सीनिअर इंस्पक्टर को भेज देता हूं.
तय किया गया कि हज़ारों मामलों के इंवेस्टिगटिंग ओफिसर सीनिअर इंस्पक्टर मातादीन को भेजा जाये.
पुलिस मंत्री ने मातादीन को बुलाकर कहा, तुम भारतीय पुलिस की उज्ज्वल परम्परा के दूत की हैसियत से जा रहे हो. ऐसा काम करना कि सारे अंतरिक्ष में डिपार्टमेंट की ऐसी जै – जै कारण हो कि प्रधान मंत्री को भी सुनायी पड जाये.
चांद की सरकार को लिखना दिया गया कि आप मातादीन को लेने के लिये पृथ्वी यान भेज दें.
मातादीन की यात्रा का दिन आ गया. एक यान अंतरिक्ष अड्डे पर उतरा. मातादीन सब से विदा ले कर यान की ओर बढे. वे धीरे धीरे अपने ईश्टदेव को भी याद किये जाते थे.
अपने मातहतों से अंतिम सवाल जवाब करने के पश्चात, मातादीन ने हवलदार को तकीद की, "हमारे घर में जचकी के वक़्त अपनी पत्नी को मदद के लिये भेजी देना." हवल्दार बोला, "जी पेक्ट्सा!"
Tuesday, January 23, 2007
2 part post
This post has 2 parts. It had to have just one, but it has 2.
Part 1 is in English.
My colleague just told me that he lost his father in a motor accident. His father was returning from the market on a moped when some young ppl on a bike hit him. He lost his balance and fell. Serious head injury. No one took him to the hospital because there was a lot of blood.
By the time he got to the hospital, it was too late.
Up until now, I was convinced about moving away from the accident site, because its very likely that the victim's family might start accusing you of causing the whole thing. If they don't, the police will look for an easy victim, make you either the accused or the eyewitness, and ensure that you have to go to the courts for years on end.. all for helping someone live?
Today, i hold that head in these hands and wonder - Must it come to this? Must someone lose his father because we find it easy to blame? And therefore, easier still to flee?
Ironically, I just finished a set of satirical essays by Shri Harishanker Parsai and one of his essays dealt with exactly this.
The second part of this post is going to be the first part of that essay.
इंसपेक्टर मातादीन चांद पर
- श्री हरीशंकर परसाई
वैज्ञानिक कहते हैं कि चांद पर जीवन नही है.
सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मातादीन कहते हैं – वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं, वहां हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है.
विज्ञान ने हमेशा इंसपेक्टर मातादीन से मात खायी है! फिंगर प्रिंट विशेषग्य कहता रहता है – छुरे पर पाये गये निशान मुल्ज़िम की उंग्लियों के नही हैं. पर मातादीन उसे सज़ा दिलवा ही देते हैं.
मातादीन कहते हैं, "य़े वैज्ञानिक केस का पूरा इंवेस्टिगेशन नहीं करते. उन्होने चान्द का उजला हिस्सा देखा और कह दिया, चांद पर जीवन नही है. मैं चांद का अन्धेरा हिस्सा देख कर आया हूं. वहां मनुष्य जाति है.
यह बात सही है क्युंकी अन्धेरे पक्ष के मातादीन माहिर माने जाते हैं.
पूछा जायेगा, इंसपेक्टर मातादीन चांद पर क्यों गये थे?
Part 1 is in English.
My colleague just told me that he lost his father in a motor accident. His father was returning from the market on a moped when some young ppl on a bike hit him. He lost his balance and fell. Serious head injury. No one took him to the hospital because there was a lot of blood.
By the time he got to the hospital, it was too late.
Up until now, I was convinced about moving away from the accident site, because its very likely that the victim's family might start accusing you of causing the whole thing. If they don't, the police will look for an easy victim, make you either the accused or the eyewitness, and ensure that you have to go to the courts for years on end.. all for helping someone live?
Today, i hold that head in these hands and wonder - Must it come to this? Must someone lose his father because we find it easy to blame? And therefore, easier still to flee?
Ironically, I just finished a set of satirical essays by Shri Harishanker Parsai and one of his essays dealt with exactly this.
The second part of this post is going to be the first part of that essay.
इंसपेक्टर मातादीन चांद पर
- श्री हरीशंकर परसाई
वैज्ञानिक कहते हैं कि चांद पर जीवन नही है.
सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मातादीन कहते हैं – वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं, वहां हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है.
विज्ञान ने हमेशा इंसपेक्टर मातादीन से मात खायी है! फिंगर प्रिंट विशेषग्य कहता रहता है – छुरे पर पाये गये निशान मुल्ज़िम की उंग्लियों के नही हैं. पर मातादीन उसे सज़ा दिलवा ही देते हैं.
मातादीन कहते हैं, "य़े वैज्ञानिक केस का पूरा इंवेस्टिगेशन नहीं करते. उन्होने चान्द का उजला हिस्सा देखा और कह दिया, चांद पर जीवन नही है. मैं चांद का अन्धेरा हिस्सा देख कर आया हूं. वहां मनुष्य जाति है.
यह बात सही है क्युंकी अन्धेरे पक्ष के मातादीन माहिर माने जाते हैं.
पूछा जायेगा, इंसपेक्टर मातादीन चांद पर क्यों गये थे?
Monday, January 15, 2007
Cultural Anthropology
I have a puzzle. It occured today, out of nowhere, in a seemingly unrelated place, but here it is.
IMPORTANT: This is purely hypothetical and academic question, more for the student of anthropology. If you are in the mood to be offended, skip the post now.
The world, as it moves from the East to the West, moves almost in a gradient of High Context-Low context, of low aggression to high aggression. The Japanese and the Americans, when one says they are the opposite ends of the world, its in more ways than one.
One rationale for this, is perhaps, that the Caucasian race is based almost entirely in the West.
The homes of these civilisations happen to be in these places, and the gradient happens to move from East to West..
The extreme West(North Americas) did have another race, but not any more. The South Americas do have another race, but I am not aware of their aggression levels, so will have to leave them out for now.
Then the mind went, suppose, we were to plant the Western race in the East, and vice versa - then?
And the pop answer: But we have! The Australian continent is, like the North Americas, politically dominated by the same race as in Europe, with same predecessors. But they are not dying to be counted among the political superpowers, the local maoris live well, and so do their customs. Most of the land is also left alone to live as it pleases, and the people have not mushroomed all over, and colonised the land just because land exists.
Why did it not happen in Australia?? Why were the locals not exterminated?
Could it, just faintly, could it be a case of the land? Could the East-West movement have anything to do with it? Your thoughts... ?
What happens when a High context, Low Aggression culture is planted in the West? Does it acquire the aggression of the land, or does the land acquire the culture of its inhabitants? It wont make sense to think of minority populations as examples. The example should be where the said culture dominates the land - then what happens?
IMPORTANT: This is purely hypothetical and academic question, more for the student of anthropology. If you are in the mood to be offended, skip the post now.
The world, as it moves from the East to the West, moves almost in a gradient of High Context-Low context, of low aggression to high aggression. The Japanese and the Americans, when one says they are the opposite ends of the world, its in more ways than one.
One rationale for this, is perhaps, that the Caucasian race is based almost entirely in the West.
The homes of these civilisations happen to be in these places, and the gradient happens to move from East to West..
The extreme West(North Americas) did have another race, but not any more. The South Americas do have another race, but I am not aware of their aggression levels, so will have to leave them out for now.
Then the mind went, suppose, we were to plant the Western race in the East, and vice versa - then?
And the pop answer: But we have! The Australian continent is, like the North Americas, politically dominated by the same race as in Europe, with same predecessors. But they are not dying to be counted among the political superpowers, the local maoris live well, and so do their customs. Most of the land is also left alone to live as it pleases, and the people have not mushroomed all over, and colonised the land just because land exists.
Why did it not happen in Australia?? Why were the locals not exterminated?
Could it, just faintly, could it be a case of the land? Could the East-West movement have anything to do with it? Your thoughts... ?
What happens when a High context, Low Aggression culture is planted in the West? Does it acquire the aggression of the land, or does the land acquire the culture of its inhabitants? It wont make sense to think of minority populations as examples. The example should be where the said culture dominates the land - then what happens?
Wednesday, January 10, 2007
25 Unusual Indians
The Week, India, in the January 7, 2007 issue has done something stupendous!!
They have a Cover Story on 25 unusual Indians.
Sample this:
1. A person who uses his nose and mouth to generate enough power(electricity) to run a bike for 10 kilometers.
2. A 70 year old person who greets foreign visitors to his city and makes sure that the tourism industry cheats do not get to them, feeds them at his house often, and takes care of them as a true host would, all in the belief that it is his duty to play host to people visiting his country.
3. An old man in Bihar who developed an amphibian cycle because of the floods. Its a hit! And he designed it in 3 days!
4. The man in a village in Punjab who creates the smallest working models of several things.. then uses these miniature models to generate an interest in the science among his students - Govt. school children.
5. A boy who can twist his entire body through a badminton racquet!
What impressed me even more was the places - Hatihalka in East Midnapore(Bengal), Vijinapura (Karnataka), Shardulgarh, Ansa (Punjab), Dimapur(Nagaland), Cuddalore (Tamil Nadu), Saurikh (UP), a village perhaps too small to be named, Motihari Distt. (Bihar) , Bangalore, Ziona, Baktwang(Mizoram), Rohtak(Haryana), Hailakandi(Assam), Mettur(Tamil Nadu), Gulmarg(Kashmir).
Go Week!! JUST THE KIND OF NEWS WE NEED! All brimming with positive energy, these stories about the grits of people who did not necessarily study, came from humble backgrounds, and had only themselves to believe in or doubt.
Much less column space to the elections and the threats please.. there is a lot of good news in the world!
This post is about:
English poetry,
fave,
Hindi Poetry,
India,
Opinion,
Society,
tag,
Urdu poetry
Monday, January 08, 2007
Today was a good day. During the day, I took certain pictures for Esha related work, and thought they will all be bad and I will have to do the entire set again.. turns out, the rejection ratio was way, way lower than even my standard!
:-)
And for you, here is potpouri:
One day the moon,
and I
had the fight.
The moon
decided
to cut out my supply of moonbeams
and turned its face
the other side.
The moonbeams laughed
and so did I.
After a while, we noticed
the moon was smiling too!
This piece comes from a simple piece of wisdom: The moon might believe that the moonbeams come from itself, but in effect, they come from the sun. We might believe that the wisdom and intellect and love we radiate comes from within, but actually, it comes from the wisdom, intellect and radiance of other people. While there are other people to be intelligent, wise and loving - the sun is out in the sky!
:-)
And for you, here is potpouri:
One day the moon,
and I
had the fight.
The moon
decided
to cut out my supply of moonbeams
and turned its face
the other side.
The moonbeams laughed
and so did I.
After a while, we noticed
the moon was smiling too!
This piece comes from a simple piece of wisdom: The moon might believe that the moonbeams come from itself, but in effect, they come from the sun. We might believe that the wisdom and intellect and love we radiate comes from within, but actually, it comes from the wisdom, intellect and radiance of other people. While there are other people to be intelligent, wise and loving - the sun is out in the sky!
Wednesday, January 03, 2007
Back after a New Year Break!
Wanted to share a lot with you about our wonderful holiday and the lousy resort, and about the salient news on that day, the things we did and the things we missed by switching off the cell phone for 4 straight days.. but all that seems so immaterial now!
This post, I will let the pictures do the talking.
This post, I will let the pictures do the talking.
Oh, and btw, do avoid the exorbitant rates of Vardaan Resorts. They are the only ones who appear when you put a net search, but that is not enough reason to throw your hard earned money away.
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