This is a random personal blog - covering everything from poetry to politics. Views presented are strictly my own.
चुप। और चुप।
और भी चुप।
जैसे कुछ कहना
अपनी ही आत्मा का
चीर हरण हो
और जैसे
कोई भी सोच
कंकड़
- शांत, सपाट पानी में।
सृष्टि मौन में
कितनी पूरी लगती है।
और सृष्टि मौन में
कितनी मृत है।
- Feb 2, 2004
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