Tuesday, October 10, 2023

चुप

चुप। और चुप। 

और भी चुप। 


जैसे कुछ कहना 

अपनी ही आत्मा का 

चीर हरण हो 


और जैसे 

कोई भी सोच 

कंकड़ 

- शांत, सपाट पानी में। 


सृष्टि मौन में 

कितनी पूरी लगती है। 

और सृष्टि मौन में 

कितनी मृत है। 

- Feb 2, 2004 


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