Sunday, March 04, 2012

galti

नहीं, कहीं कुछ , गलती हुई है
ज़रूर
तुम
ये जगह
ये रहगुज़र
ये कुछ भी
मेरे रास्ते में नहीं पड़ने  थे
नक़्शे पर कहीं
निशाँ नहीं है इस सब का

और फिर भी
आज
तुम, सजीव , मेरे सामने हो..
ये जगह भी
असली लगती है
और रहगुज़र में से
अभी लुट कर निकला हूँ मैं

नहीं, कहीं कुछ , गलती हुई है
ज़रूर

इस रास्ते पर
होना नहीं चाहिए था मुझे
या शायद
होना ही नहीं
चाहिए था मुझे
रास्ता गलत नहीं है
गलत है
मेरा होना
और मेरे कारण
इस नक़्शे का होना

4 comments:

Onkar said...

simply brilliant. you should share more of your poems with us.

sandhya said...

Lovely!

Let me counter it by quoting Robert Frost-
Two roads diverged in a wood, and I
I took the one less traveled by
And that has made all the difference!

Himanshu Tandon said...

Good one.. simple and effective.
I wish you had continued on and added more to it...

Manish Raj said...

...felt a bit of contradiction in final lines...

but anyway if there is something...it might be the time..to redraw the maps...for you could be the only lucky one to get lost...to know all the roads...

..you are always a blessing..