Sunday, January 28, 2007

इंसपेक्टर मातादीन चांद पर - IV

मातादीन उन कारणों की जांच कर रहे थे जिनके कारण पुलिस लापरवाह और अलाल हो गयी है. वह अपराधों पर ध्यान नही देती. कोई कारण नही मिल रहा था. एकाएक उनकी बुद्धि में एक चमक आयी. उन्होने मुंशी से कहा, ज़रा तंख्वाह का रजिस्टर बताओ.
तंख्वाह का रजिस्टर देखा, तो सब समझ में आ गया. कारण पकड में आ गया.


शाम को उन्होने पुलिस मंत्री से कहा, मैं समझ गया कि आपकी पुलिस मुस्तैद क्युन नही है. आप इतनी बडी तंख्वाह देते हैं इस लिये. सिपाही को 500, हवलदार को 700, थानेदार को हज़ार, ये क्या मज़ाक है? आखिर पुलिस अपराधी को क्यूं पकडे?
हमारे यहां सिपाही को 100 और थानेदार को 200 देते हैं तो वो 24 घंटे जुर्म की तलाश करते हैं.. आप फौरन् तंख्वाहे घटाइये.
पुलिस मंत्री ने कहा, - मगर ये तो अन्याय होगा. अच्छा वेतन नही मिलेगा तो काम ही क्यों करेंगे?
मातादीन ने कहा, इस में कोई अन्याय नही है. आप देखेंगे की पहली घटी हुई तंख्वाह मिलते ही आप की पुलिस की मनोवृति में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जायेगा.


पुलिस मंत्री ने तंख्वाहे घटा दीं और 2-3 महीने में सचमुच बहुत फर्क आ गया. पुलिस एक दम मुस्तैद हो गयी. सोते से एक दम जाग गयी. चारों तरफ नज़र रखने लगी. अपराधियों की दुनिया में घबराहट मच गयी. पुलिस मंत्री ने तमाम थानों के record बुलवाकर देखे. पहले से कई गुना ज़्यादा केस register हुए थे. उन्होने मातादीन को बुलाकर कहा, - मैं आपकी सूझ की तरीफ करता हों, आप ने क्रांति कर दी. पर ये हुआ किस तरह?

मातादीन ने समझाया – बात बहुत मामूली है. कम तंख्वाह दोगे, तो मुलाज़िम कि गुज़र नही होगी. 100 रुपये में सिपाही बच्चों को नही पाल सकता. उसे ऊपरी आमदनी करनी ही पडेगी. और ऊपरी आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को पकडेगा. गरज़ ये कि वो अपराधों पर नज़र रखेगा. हमारे राम राज के स्वच्छ और सक्षम प्रशासन का यही रहस्य है.

चन्द्रलोक में इस चमत्कारण की खबर फैल गयी. लोग मातादीन को देखने आने लगे कि वह आदमी कैसा है जो तंख्वाह कम कर के सक्षमता ला देता है. पुलिस के लोग भी खुश थे. बोलते – गुरू, आप इधर ना पधारते तो हम सब कोरी तंख्वाह से ही गुज़र करते रहे. सरकार भी खुश थी कि मुनाफे का बजट बनने वाला था.

आधी समस्या हल हो गयी. पुलिस अपराधी पकडने लगी थी. अब मामले की जांच विधि में सुधार करना रह गया था.

10 comments:

Neihal said...

wondering 'janch vidhi ka sudhar kaise hoga'
:))

How do we know said...

That, my dear, is the most interesting part.. :-)

Neihal said...

chand walo ki aadhi samasya hal ho gayi aur meri doguni badh gayi ;)

Itchingtowrite said...

good one!! performance bonus right?

Wriju said...

Wow :)
Turns management principles over their head!

Jagdish Bhatia said...

बहुत अच्छी रही यह कहानी।
बहुत मजा आया।

Nabeel said...

??

The Phosgene Kid said...

Just passing through...

editor said...

Inspector Matadin, wah. These posts are really nice.
BTW. I am sorry that either I couldn't convey what I meant or wrote ambigous. Actually, I meant that if the community really is interested in politics then they should not treat BJP or Shiv Sena as untouchables. Kindly re-read and please try to understand.

How do we know said...

Hi Everyone: I am sorry I couldn't complete the Matadin story in Hindi. Am still working on it, but the progress is slow. As promised, will also put up an English synopsis soon.

Hi Indscribe: Read again. Did not understand. I protest against being branded a "Vote Bank" - just because of my religion. That sort of cheapness is best left to politicians.

When i vote, i vote for administrative expectations. NO administration can make me a better Muslim. That is upto me. In Voting, the things to ask are - Bijli, Paani, Rozgaar, Inflation, Sadak, understanding of local and national issues, corruption handling. The Indian Voter needs to start thinking of the real reasons why an administration exists. If we want to make the administration accountable, it has to start by preparing the right report card.

There is life beyond one's faith - there are other things that define a person. To limit a person's identity to just his/her faith is ridiculous.
To base his voting decision on the faith allegiance, and then to demand administrative measures on the basis of caste and religion is just plain playing the game that the politicians want you to play.

So you see, I do not understand.