वो मुझे ऐसे देखता था, जैसे एक मर्द एक औरत को देखता है – हसरत से।
वो
मुझ से ऐसे बात करता था, जैसे एक लड़का एक लड़की से बात करता है – हसरत से, पर उस
हसरत को पूरा न कर पाने की मजबूरी बातों-बातों में बयान करते हुए। थोड़ा झिझक कर, थोड़ा रुक कर।
बात
पूरी हो जाने के बाद, बस एक छोटे से पल के लिए
रुक जाता था।
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I thought I'd use this as the start of a short story, but the thought is beautiful, and complete enough to live by itself.
Makes one wonder - gadya mein kitni aisi kavita numa baatein chhipi hoti hain, jinhein ham padhte to hain, par un par gaur nahi karte..
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