Thursday, April 06, 2023

Mukriyaan

ऐसी मीठी तान सुनावे 

कानों में मिस्री घुल  जावे 

मास जेठ का होवे सीत 

हरे अंब को बनावे पीत। 

का सखी, कोयल? 

न सखी, प्रीत! 

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नटखट मन को लगते प्यारे 

खेलें सबहूं साथी हमारे! 

लगें एक से, पर हैं न्यारे। 

उजले मन, पैरहन कारे। 

का सखी, टोली? 

न सखी, तारे! 


*पैरहन - कपड़े 

कारे - काले 

सबहूं - सभी 

न्यारे - नायाब/ unique 

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Updated April 17: 

तन पर हो तो देव बनाये 

सागर में समावे नीर.

नभ में व्याप्त होवे यूं

पूरा नभ बन जावे झील.


का सखी, ओज?  

न सखी, नील.

तन पर हो तो देव बनाये  - Both Shiva and Vishnu are characterised by blue - Shiva as Neelkanth and Vishnu as blue-bodied. 

ओज - light, प्रकाश, रोशनी 



My humble attempt at Mukriyaan. 

Mukriyaan are known to be written by Amir Khusro, but were possibly in folk culture earlier also because i remember this format in some classic Sanskrit plays. 


5 comments:

Sweta sinha said...

क्या बात है,सुदंर अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ अप्रैल २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Sudha Devrani said...

वाह!!!
बहुत ही सुंदर मुकरियाँ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुंदर मुकरियाँ ।

yashoda Agrawal said...

की जाना मैं कौन
ऐसी मीठी तान सुनावे
कानों में मिस्री घुल जावे
आभार
सादर

रेणु said...

वाह सरस और मधुर कहमुकरियाँ।पर विधा का आधा नाम क्यों?