Monday, January 23, 2023

How do we describe our actions?

 Have you ever noticed that when we do something that is not right, we dissociate ourselves from it immediately: 

"I did what needed to be done." 

"It was my job." 

"I had to do this to survive." 

But when we do something positive, we associate it with ourselves, personally: 

"Very glad to be a part of ~" 

"Spent a beautiful morning doing ~" 


This is not isolated. Even the drug lord, when asked to describe himself, says, "I was a good guy. I helped a lot of people."  - This is documented. Even serial killers and psychopaths view themselves as "good person". 

The need to feel that one is a good person is universal. So, anything that conflicts with that need is either flat out denied (I never did any of those things) or rationalised (I did what needed to be done). 

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In the spiritual world, the goodness in the human heart is the natural state of existence. To do something that hurts another soul - that is the anomaly. That is why we immediately distance ourselves from it. 


Even a hacker, when asked why he hacked, will give you a reason like avenging another wrong, or something else. Very few people say, " I did it to see them suffer." The words are likely to be "It had to be done." 

If you want to move towards unity with your self, the way to do that is by removing the distance between the self and the action by the self. 

A good rule of thumb is to ask yourself, "How will I describe this?"

If the answer is, "I did~", that is an action that is close to the unity of your soul. 

Conversely, if the answer is closer to the impersonal - "I had to.." "Something needed to be done~" etc., then it is distant from your soul and will lead to discomfort and friction. 

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 I wish i could explain this using a brilliant Zen story or something, but, well, one has limitations. 


Quotes

 Non-participation in politics is driven by respect (for the leader) or apathy. Both can end. 


Sunday, January 22, 2023

खूबसूरत है आज भी दुनिया - पुस्तक समीक्षा /Madhav Kaushik ke sher

हम एक किताब को 2 बार जीते हैं - पहली बार, उसे पढ़ते हुए, और दूसरी बार, उसकी समीक्षा करते हुए। 

यह लेखक का 9 वां ग़ज़ल संग्रह है। 

संग्रह में बहुत से अच्छे शेर हैं। लेखक की सबसे अच्छी पहचान उसके शब्द होते हैं। शब्दों को बोलने देते हैं। 

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मैं अपने पाँव में अंगार क्यूँ ना बांध कर आऊँ 

मुझे गुमनामियों की कैद से बाहर निकलना है 

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धरती भी अंगड़ाई ले कर नाच उठे 

प्यार भरा इक खत जब अम्बर लिखता है। 

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बारिशें होती हैं अब तेजाब की 

दूधिया बूंदों का सावन अब कहाँ! 

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मरना तो यूं भी मुश्किल है जीना भी दुश्वार नदी 

प्यार- मोहब्बत, रिश्ते-नाते, हो गए कारोबार नदी 


ऐसा भी क्या दीवानापन, ऐसा भी क्या प्यार नदी, 

सागर से मिलने जाती है तू ही क्यूँ हर बार नदी? 


साथ साथ चलते हैं लेकिन अलग अलग हैं तट दोनों

सदियों से कायम है अब तक पानी की दीवार नदी 


जब से मैंने दिल कि बातें बतलाई हैं चुपके से 

लगता है उस दिन से गुमसुम बैठी है लाचार नदी 

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मेरे कहने पर ज़ेहन में छाँव ठंडी रख भी ले 

ज़िंदगी की राह में गहरे शजर आते नहीं 

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मंजिल पर जो पहुंचा सिर्फ हौसला था 

चलने वाले पैर सफर में टूट गए 


झूठा दुआ सलाम भी यारो नहीं रहा 

सारे रिश्ते अगर-मगर में टूट गए 

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जब अपने हाल से लड़ने की ठान लेता है 

वहीं से कौम का सपना उड़ान लेता है 


उसे पता ही नहीं अब नहीं बचा कोई 

वो घर की आस में अक्सर मकान लेता है 

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कौन जाने खो गया धरती के सीने में कहाँ 

देखते ही देखते लश्कर कहाँ गायब हुआ 


है अगर कानून अंधा तो अदालत ही कहे 

मुंसिफों के सामने खंजर कहाँ गायब हुआ 

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होरी की चीखें टकराईं जा कर चाँद सितारों तक 

लेकिन उसकी खबर न पहुंची शहरों के अखबारों तक 

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सूरज त ताव देख कर जुगनू ने ये कहा 

- इकबाल है बुलंद मेरे खानदान का 

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चंद सपनों को तो मैंने खुद किया घर से बदर 

कत्ल कुछ ख्वाबों का मुझ से बे इरादा हो गया 

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बहुत मजबूर हूँ मैं दिल के हाथों 

अँधेरों को उजाले लिख रहा हूँ 


बहुत ही देर से होगा असल में 

सभी कुछ काफी पहले लिख रहा हूँ 


इन्हीं से काश मिट जाते मसाइल 

दीवारों पर जो नारे लिख रहा हूँ 

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इसी लिए तो हर आहट को सुनो बहुत बारीकी से 

दबे पाँव, चुपचाप ज़ेहन में मरने का डर आएगा 

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क्या हुआ रद्दो-बदल हालात में 

भूख उगती है अगर देहात में 


बस उसी के नाम का सिक्का चला 

आ गए सब लोग जिसकी बात में 


उस से पूछो वक़्त कि मजबूरियाँ 

जल गया जिसका चमन बरसात में 


अब रगों में दौड़ता है कब लहू 

बर्फ सी जमने लगी जज़्बात में वो चलती है तो चलते हैं सितारे 

दुआ के रास्ते को रोकना मत 


गुजारिश ही नहीं ये इल्तिजा है 

किसी का भी भरोसा तोड़ना मत 

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मेरा मलबा किसी पर भी गिरे क्यूँ 

बड़ी संजीदगी से ढह रहा हूँ 

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बिना चले भी कोई कैसे चल सकता है सदियों तक 

तुझे देख कर मैंने भी यह सीख लिया दीवार घड़ी 


गए वक़्त की हर एक धड़कन जज़्ब है तेरे सीने में 

मेरी आँखों में ज़िंदा है हर सपना दीवार घड़ी 

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 पहले तो घबरा कर छिपता था घर में 

अब घबरा कर आदम घर से निकलेगा 

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जो था सब बर्बाद हुआ 

तान के लंबी सोया आज 

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अंधियारा दुनिया का अब तक छंटा नहीं 

सूरज ने हर रोज निकल कर देख लिया 

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गुलशन ने क्यूँ बाँट दिया 

खुशबू को खैरातों में 

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मेरे कद से बड़े कद के कई थे 

मगर मैंने उन्हें बौना लिखा है 


मैं हंसने का सलीका जानता हूँ 

मुकद्दर में मेरे रोना लिखा है 

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हवा का एक झोंका ही गगन के पार ले जाए 

चलो, इस बार मैं खुशबू में ढल कर देख लेता हूँ 

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खुशी से ग़म ग़लत करना पड़ेगा 

हमें हर हाल में मरना पड़ेगा 


मुसाफिर लौट जाए न इधर से 

दिया दहलीज़ पर धरना पड़ेगा 


गुनाह जिसने उजाले में किया है 

अंधेरे में उसे डरना पड़ेगा 


किया है जुर्म तो दुनिया ने लेकिन 

ये हर्जाना हमें भरना पड़ेगा 

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सब के सब अपनी बलाएँ छोड़ जाते हैं यहाँ 

इन मज़ारों पर चढ़ी चादर बहुत खामोश है 

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इसलिए उड़ते हुए डरता नहीं कोई कभी 

हर परिंदा जानता है पर कहीं मौजूद हैं 

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कुंभकरण की नींद सो रहा राजा तुमसे पूछेगा 

शहरों के हर चौराहे पर इतनी राम दुहाई क्यूँ 

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हौसला है कि टूटता ही नहीं 

वरना सब कुछ थकन से टूट गया 

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सदियाँ बीत गई हैं दुनिया बसे हुए 

फिर भी आदमज़ात समझ से बाहर है 


'सत्यमेव जयते' सब कहते हैं लेकिन 

सच्चाई की मात समझ से बाहर है 

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सारे मिसरे एक तरह के 

शेरों से शायर गायब हैं 

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कोई शिकवा ज़माने से न तुमसे 

ये रास्ता हमने खुद ही चुना है 

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What every startup founder feels 

पर्वत से ज़्यादा ऊंचा था मेरे मन का हर सपना 

सपनों को बौना कर डाला सपनों की रुसवाई ने 

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शहर में सपनों का कोई भी तरफदार नहीं 

आप जाएंगे कहाँ रंग-ए -हिना को लेकर 

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सभी एक जैसे थे कातिल शहर में 

मगर सब का खंजर बहुत ही अलग था 


कभी उस से मिलने नहीं कोई आया 

जो रहता था अंदर बहुत ही अलग था 

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बस अपनी ही खबर नहीं है लोगों को 

रहते हैं कुछ लोग खबर में पहले भी 

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Notes from a prostitute's diary : 

सिर्फ अपने ही घर नहीं पहुंची 

जाने किस किस के घर गई लेकिन 

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अभी गुज़रे हुए लम्हों के कूड़ेदान मत फेंको 

हमें कचरे से असली ज़िंदगानी छाँटनी होगी 


On parenting: 

कहीं ऐसा न हो मुंहजोर बच्चे सब बिगड़ जाएँ 

कड़ाई से जवान पीढ़ी यकीनन डाँटनी होगी 


Children on climate change:  

मुझे अपने बुजुर्गों से शिकायत है तो बस इतनी 

जो बोई थी फसल तुमने हमीं को काटनी होगी 

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On self motivation: 

फकत उस एक पल की कैफियत मुझ में समा जाए 

अकेला एक चना जब भाड़ को भी फोड़ देता है 


सुनो, उस काठ के पुतले में है संभावना सारी 

जो अपने नाच से पहले ही धागा तोड़ देता है 

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On misunderstandings among friends: 

अब नहीं राब्ता कोई उन से 

दिल तो शिकवे-गिले ने तोड़ दिया 

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पेड़ पतझड़ में भी झरे कितना 

जख्म भरते हुए भरे कितना 


On small families playing loud music on festivals instead of meeting other people and having real parties: 

घुस गया है ज़ेहन में सन्नाटा

शोर घर में कोई करे कितना! 

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रास्ते के गुबार से पूछो 

ज़ेहन में नक्शा भी था मंज़िल का 

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On motivating self: 

जब कभी कंदील सपनों की बुझी 

ज़ेहन में जुगनू उठा कर रख लिए 

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बर्फ से जाम गए सभी रिश्ते 

हम पसीने से तर-बतर आए 


ये भी कुदरत का ही करिश्मा है 

कोई घर से चले तो घर आए 

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On Hope: 

रात काली हो चाहे जितनी भी 

एक जुगनू पछाड़ देता है 


चाँद लिखता है रात भर कविता 

सुबह होते ही फाड़ देता है 


प्यार देती हैं घाटियां सब को 

और सपने पहाड़ देता है 

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मैं न मीरा हूँ न सुकरात अपने दौर का 

मेरे हाथों में थमाया ये जहर किस काम का 


इसका मतलब तो कोई बेघर बताएगा उन्हें 

घर के बाशिंदों को क्या मालूम घर किस काम का! 


हो सके तो तान कर रखिए हमेशा रीढ़ को 

सबके आगे झुकने वाला दोस्त सर किस काम का 

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On a world that refuses to introspect: 

आईना ले कर खड़ा हूँ, सामने आते नहीं 

कब तलाक अपने किए पर लोग शरमाते नहीं 


मैं पता सूरज का आखिर पूछने जाऊं कहाँ 

आजकल उम्मीद के जुगनू इधर आते नहीं 


आँख में आँसूं लिए मुझ से कहा भगवान ने 

आदमी हो कर कभी हाथों को फैलाते नहीं 


क्या पता किस खौफ से खामोश रहते हैं सभी 

इस शहर के लोग मर जाते हैं, चिल्लाते नहीं 

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- Madhav Kaushik 

Note: the interpretation preceding some shers are mine. The beauty of poetry is that everyone can interpret a verse in a different way. Please feel free to ignore the suggestions completely.      


 

Monday, January 16, 2023

On Elon Musk losing value in 2022

What Elon Musk has done through Twitter files is far more valuable than any valuation lost in 2022. 

Sadly, no mainstream media has carried Twitter files even though the findings are very serious. 

Madhav Kaushik ka sher


वी चलती है तो चलते हैं सितारे 

दुआ के रास्ते को रोकना मत 


Tuesday, January 10, 2023

हिन्दी दिवस पर / On Hindi Day

दिल का भी कुछ असबाब रखता हूँ 

घर में हिन्दी की किताब रखता हूँ 

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कतरन / Katranein

कभी शर्म से सुर्खरू, कभी गुस्से में लाल पीली - तुम्हारे कितने रंग हैं? 

जितने रंग धनक के, उतने मेरे! 

मतलब,  सात? 

न! हर वो रंग, जो तुम्हारी आँख देख सकती है।


Saturday, January 07, 2023

More quotes

 I want to meet the genius who named Delhi's climate band "temperate".

At this time, the Open Air Fridge of Delhi is consistently maintaining 5 degrees.
I would post a picture of View from my Window, but that would give the term Smokescreen a whole new meaning.

Tuesday, January 03, 2023

गलती

तुम्हारे 

काबिल होना था -

मुकाबिल होता गया। 


शामिल होना था, 

ग़ाफिल होता गया।