Note:
1. This story is based on the original story of Devi Ahilya being cursed by her husband, Rishi Gautam, for her disloyalty. Please read that story for context.
2. I understand that in some versions of the original story, Devi Ahilya knew that Indra wasn't her husband and was complicit in the act. However, in the original version that I have read, Devi Ahilya was tricked into believing that it was her husband. I accept this version of the story, simply because if Devi Ahilya was complicit, Indra would not have needed to take another form at all. Also, that was the first version I heard from my family. The second version, of Devi Ahilya being complicit, appears to be of recent origin.
स्वर्ग में हाहाकार मचा हुआ था। ऋषि गौतम ने देवी अहिल्या को श्राप दिया था! किन्तु यह
क्या! देवी अहिल्या ने ऋषि गौतम का श्राप लौटा दिया, और अपने पति से मुकदमे की
मांग करने लगीं।
“आपने
मुझे पवित्र होते हुआ भी श्राप दिया है! इस श्राप को अपनाने का अर्थ है, अपना दोष
मान लेना। किन्तु मैं दोषी नहीं हूँ! इसलिए मुझे न्याय चाहिए!”
ऋषि
गौतम और देवी आहिल्या के बीच का झगड़ा,वह भी देवराज इंद्र के कारण! त्रिमूर्ति के
अलावा उस का निर्णायक कौन हो सकता था? यही निश्चय किया गया कि उस मुकदमे के जज
त्रिमूर्ति में से ही एक होंगे।
पहला
नाम तो ब्रह्मा जी का ही आया। किन्तु ऋषि गौतम को देवी सरस्वती का स्मरण हो आया और
उन्होंने ब्रह्मा जी को जज बनाने का विचार तुरंत छोड़ दिया।
अगला
नाम श्री विष्णु का था। जैसे ही वे सब अपना मुकदमा ले कर बैकुंठ पहुंचे, श्री
लक्ष्मी देवी ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया। “मेरे पति वैसे ही दुनिया भर के जी
जंजालों में फंसे हुए हैं! ब्रह्मा जी बना कर निकल लिए और शिव जी को हर युग में एक
बार काम करना होता है। पर ये रोज़ का पालन
पोषण, इस में कितना समय लगता है, कितनी मेहनत करनी पड़ती है, किसी ने सोचा है!? 2
पल का समय नहीं मिलता हम पति पत्नी को साथ में बैठने का! शिव और पार्वती जी तो धरती
भ्रमण को भी साथ ही जाते हैं, पर इनके और मेरे तो भक्त भी same नहीं हैं! इनको अलग
प्रार्थना की कॉल पर जाना पड़ता है और मुझे अलग! तरस गई मैं साथ में बैठ कर एक समय
का भोजन करने को! खबरदार जो उन्हें एक पल का भी काम और देने की सोची! वैसे भी,
धरती के संविधान में अब Executive और Judiciary
का काम एक ही संस्था को नहीं दे सकते। वैकुंठ का ऑफिस केवल Executive
है, हमें Judiciary चलाने का
अधिकार नहीं है। आप लोग अपना झगड़ा ले कर कहीं और जाइए!”
अब तीसरा नाम शिव का ही हो सकता था। यह प्रस्ताव देवी
आहिल्या को विशेषकर अच्छा लगा। उन्होंने कहा, “शिव तो हैं ही एक पत्नी धारी।
उन्होंने माँ पार्वती के देह छोड़ने के बाद भी, उनके अगले जन्म की प्रतीक्षा की। और
कोई विवाह नहीं किया। ऐसी ही निष्ठा मेरी भी मेरे पति के प्रति है। शिव ही श्रेष्ठ
रहेंगे। निष्ठा और loyalty की पहचान शिव से अच्छी कौन कर सकता
है?”
बात सभी को जंच गई।
शिव की अदालत में मुकदमा शुरू हुआ।
गौतम ने पहले अपनी बात रखी – मेरी पत्नी सती है। इसे अपनी
योगिक शक्ति से पता चल जाना चाहिए था कि वह पुरुष मैं नहीं, मेरे रूप में इन्द्र
है! यदि उसे पता नहीं चला, तो अवश्य ही उसके सतीत्व में कोई खोट है।“
सभा में सब सर हाँ की मुद्रा में हिले। देवी आहिल्या कोई ऐसी
वैसी पत्नी नहीं थीं। कितनी विद्या और योग शक्ति थी उनके पास!
अब देवी अहिल्या उठीं।
“मेरे पति का आरोप है, कि मैंने अपनी दिव्य दृष्टि से क्यूँ
नहीं देखा कि वे गौतम नहीं, इन्द्र हैं?
मेरा कहना है की यह प्रश्न ही निर्मूल है। मेरे जानने या न
जानने से घटनाक्रम पर कोई असर ही नहीं पड़ता । कैसे?
अगर मैं जान भी लेती कि यह व्यक्ति इन्द्र है, तब भी, क्या
वह मान जाता कि वह इन्द्र है? वह हठ करता कि वह गौतम ही है। इस हठ के सामने मेरी
एक नहीं चलती। आज भी, धरती लोक पर एक ब्याहता पत्नी अपने पति के
परिणय निवेदन को अस्वीकार नहीं कर सकती। Marital rape
is not a crime on Earth.अगर मैं मना भी करती, और वह बल का
प्रयोग करता, क्यूंकि ऐसा हर पति का अधिकार है। “
पार्वती जी और गणिकाएँ यह सुन कर हाँ की मुद्रा में सर
हिलाने लगीं।
“पर तुम फिर भी check तो कर सकती
थीं?” गौतम अब भी हार मानने को तय्यार नहीं थे।
“पतिदेव, आप, मुझ, और इन्द्र में से, सर्वाधिक मायावी
शक्तियां इन्द्र के पास हैं, उस के बाद आप के पास। आप मुझे बताइए – आधी रात को मुर्गा
बांग देता है, चाँद अब भी आसमान में है, और आपको कुछ खटकता भी नहीं? मुझ सोई हुई
को चेक कर लेना चाहिए था? आपकी दिव्य दृष्टि कहाँ थी?
धरती पर भी एक कहावत है – ज़र, जोरू, और ज़मीन का ध्यान रखना
चाहिए। तो आप बताइए, कि आपने अपनी पत्नी की रक्षा क्यूँ नहीं की? आपके सामने लक्षण
थे, उन लक्षणों को आपने अनदेखा किया। आपकी लापरवाही से मेरे मान की हानी हुई। आपको
क्या दंड मिलना चाहिए?”
सभा में चुप्पी छा गई। केवल देवी अहिल्या की आवाज आ रही थी।
“मैं किसी पर पुरुष से संसर्ग करने घर के बाहर नहीं गई। ना
ही मैंने आपको छल से कहीं भेज कर पर पुरुष को आमंत्रित किया। आपकी लापरवाही से,
आपके घर में, आपके संरक्षण में, मेरे साथ छल हुआ है।
मैंने अपने पति का परिणय निवेदन पाया, और हमेशा की तरह हाँ
कर दी।
इन में से आप क्या बदलना चाहेंगे?
क्या हर सती स्त्री अपने पति का परिणय निवेदन पाते ही दिव्य
दृष्टि से चेक करे, कि यह व्यक्ति पति है कि नहीं?
या, सती स्त्री को अधिकार है, कि यदि वह शंका में हो तो पति
से संसर्ग न करे?”
जैसे ही देवी आहिल्या की बात समाप्त हुई, शिव और पार्वती ने
धीरे से एक दूसरे को देखा और मुस्कुराये।
ऋषि गौतम को परिणाम सुनने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी। पर
मुद्दई थे, मुकदमा छोड़ कर भी कैसे भागते?
शिव जी ने देवी अहिल्या से पूछा – “देवी, आपके पति से, अपने
घर में, आपके संरक्षण में कमी हुई है। रात्रि के समय वे आपको अकेला छोड़ कर चले गए
थे। इसका दंड तो उन्हें दिया जा सकता है, पर पति पत्नी का मामला है, आप लोग आपस
में सुलझा भी सकते हो।“
ऋषि गौतम और देवी अहिल्या ने एक दूसरे की ओर देखा, और जैसे Family
Court से सफल जोड़े निकलते हैं, दोनों हाथ में हाथ डाले वहाँ से
निकले।