Tuesday, August 17, 2021

Book Review: Suryabala ki Lokpriya Kahaniyaan

इस पुस्तक की समीक्षा कोई कैसे करे? मोती की माला नहीं कह सकते, क्यूंकि हर मोती सुंदर तो होता है, किन्तु लगता एक सा है। इस कथावली की हर कहानी अलग रस की है। 

पुराने सिंधु घाटी के अवशेषों में देखा है, ऐसे हार हुआ करते थे जिनका एक एक मनका (bead) अपने आप में सम्पूर्ण और विलक्षण हुआ करता था। ये पुस्तक उन्ही हारों के जैसी है। एक एक कहानी की समीक्षा अलग से करने का मन करता है। पर पाठक के पास पुस्तक से लंबी समीक्षा पढ़ने का समय कहाँ हैं? 

सबसे बड़ी दुख की बात ये है कि यह पुस्तक हमें सोचने पर विवश करती है। कई कई सवाल, जो भीतर उठते तो हैं, पर उत्तर नहीं पाते। इस पुस्तक को पढ़ने में रस है, हर कहानी मन को बांधती है। पर पढे जाने पर मन को छोडती नहीं। पुराने समय में जैसे माँ सफर पर चलने से पहले गुड़ ढेला साथ बांध देती थी न, ये कहानियाँ भी ऐसा ही कुछ करती हैं। 

मैंने अंतिम कहानी - माय नेम इस ताशा से पुस्तक शुरू की थी। अच्छा किया। 

माय नेम इस ताशा, रमन की चाची, बाउजी और बंदर, दूज का टीका, कंगाल, न किन्नी न  - ये कहानियाँ परिवारों के बारे में गहराई से सोचने पर मजबूर करती हैं। क्या सच में अधिकार के हनन से ही परिवार का सृजन हो सकता है? हमारी आधुनिकता ने हमें जो दिया है, और हम  से जो ले लिया है, दोनों स्पष्ट सामने दिखते हैं । जो पाया है, उसके बिना जीना संभव नहीं। और जो खो दिया है, वह भी हमें अपने साथ लिए जाता है, शून्य की ओर। अकेला नहीं मरेगा वह, हमें साथ ले कर मरेगा। क्यूंकि उसके बिना जीवन प्लास्टिक के फूल की तरह चटक, रंगदार, और सुंदर तो है, उतना ही निस्सार भी है। 

कुछ कहानियाँ बाल मन का प्रतिनिधित्व करती हैं। माय नेम इस ताशा, तोहफा, मेरा विद्रोह। एक बार फिर से, जो पा लिया है, उसका आमना सामना, जी खो चुके हैं, उस से होता है। और एक बहुत बड़ा प्रश्न सीधा आ कर सामने खड़ा हो जाता है - बताओ, क्या महत्वपूर्ण है? क्या रख पाओगे? 

कुछ कहानियाँ स्त्री मन की हैं। वे मीठे मीठे सपने, वे सब बातें, जो हर स्त्री जानती भी है, और सोचती भी है। 

लाल पलाश के फूल - उन बहुत कम कहानियों में से है, जो पढ़ने पर अधूरी सी लगती हैं, या लगता है, इसका अंत जीवन में ऐसा होता तो है, पर कहानी में ऐसा होना नहीं चाहिए था। 

पर एक इंद्रधनुष जुबेदा के नाम अपने आप में पूरी कहानी है। कुछ आधा छूटा नहीं। 

इस संग्रह में 15 कहानियाँ हैं। इसे अवश्य पढिए। 




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