पहले बुद्धि
फिर अनुभूति
फिर समरसता
फिर आनंद
फिर प्रेम
इस से आगे का रास्ता
अभी नहीं देखा.
प्रेम से ऊपर
केवल दीप्ति
न स्रोत का ज्ञान
न गंतव्य की आवश्यकता
केवल
परिपूर्णता।
फिर अनुभूति
फिर समरसता
फिर आनंद
फिर प्रेम
इस से आगे का रास्ता
अभी नहीं देखा.
प्रेम से ऊपर
केवल दीप्ति
न स्रोत का ज्ञान
न गंतव्य की आवश्यकता
केवल
परिपूर्णता।
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