Sunday, May 10, 2020

Hindi poem on Corona

लोग अपने घरवालों के साथ समय बिता रहे हैं. 
किसी को दिखावे की होड़ नहीं है.
आपके पास कौन सी गाडी है, कोई फर्क नहीं पड़ता।
आप किस कॉलोनी में रहते हैं, कोई फर्क नहीं पड़ता।
किसी को कहीं नहीं जाना।
हवा साफ़ है, परिंदे आज़ाद.

घर का बना खाना खाया जा रहा है
एक दुसरे के साथ रहने की विधा सीखी जा रही है
भागकर जाने को कोई जगह नहीं है
अपने अपनों से
न दफ्तर, न छुट्टियां।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे 

भगवान् कभी कभी कृष्ण बन कर नहीं, 
कोरोना बन कर आते हैं 

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