Saturday, March 16, 2019

Paheli aur hum

वो जो पहेली बचपन में होती थी न - बन्दर एक कुंए  में, रोज़ ३ फुट की छलांग लगाता है और २ फुट नीचे फिसल जाता है. उसे कुंए में से निकलने में कितने दिन लगेंगे? 
- ये पहेली मुझे हमेशा बड़ी हास्यास्पद लगती थी. भला ऐसा  कहीं होता है? बन्दर रोज़ छलांग लगाये, रोज़  फिसले? बन्दर भला कुंए में गिरेगा कैसे? 

आज मुझे समझ आया - ये पहेली सच है. और हम सब, कुंए के बन्दर हैं. सबका कुंआ अलग अलग है - किसी का कुंआ ये भवसागर, किसी का कुंआ १० किलो वज़न. 

रोज़ छलांग लगाने से, २ फुट फिसल कर भी, पिछले दिन से १ फुट ऊपर ही होंगे. और छलांग न लगाने से, २ फुट की फिसलन तो अपने आप हो ही जाएगी। इस कुंवे का कोई तला नहीं होता। १० किलो वज़न ३० किलो बन सकता है, और भवसागर पाप का डेरा। 

हर रोज़, वो ३ फुट की छलांग लगाते रहने से, एक दिन, कुंवे से निकलना निश्चित है - चाहे वो भवसागर हो, या १० किलो वज़न. 

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