मैं सदा तेरी किताब के
हाशिये में ही रहा हूँ
मुखपृष्ठ पर
या सहफे पर
कभी नाम नहीं आया मेरा
होली के गुब्बारे में
पानी का वज़न चाहे जितना हो
वज़ू नहीं करता कोई
उस पीठ पर फूटने वाले से
पानी के कतरे भी
ले कर आते हैं
अपना नसीब
तो मैंने कौन से सपने के तहत
पार करना था
हाशिये से सहफे का सफर ?
हाशिये में ही रहा हूँ
मुखपृष्ठ पर
या सहफे पर
कभी नाम नहीं आया मेरा
होली के गुब्बारे में
पानी का वज़न चाहे जितना हो
वज़ू नहीं करता कोई
उस पीठ पर फूटने वाले से
पानी के कतरे भी
ले कर आते हैं
अपना नसीब
तो मैंने कौन से सपने के तहत
पार करना था
हाशिये से सहफे का सफर ?