मैं सदा तेरी किताब के
हाशिये में ही रहा हूँ
मुखपृष्ठ पर
या सहफे पर
कभी नाम नहीं आया मेरा
होली के गुब्बारे में
पानी का वज़न चाहे जितना हो
वज़ू नहीं करता कोई
उस पीठ पर फूटने वाले से
पानी के कतरे भी
ले कर आते हैं
अपना नसीब
तो मैंने कौन से सपने के तहत
पार करना था
हाशिये से सहफे का सफर ?
हाशिये में ही रहा हूँ
मुखपृष्ठ पर
या सहफे पर
कभी नाम नहीं आया मेरा
होली के गुब्बारे में
पानी का वज़न चाहे जितना हो
वज़ू नहीं करता कोई
उस पीठ पर फूटने वाले से
पानी के कतरे भी
ले कर आते हैं
अपना नसीब
तो मैंने कौन से सपने के तहत
पार करना था
हाशिये से सहफे का सफर ?
2 comments:
पर शायद अच्छा ही है कि
मैं हाशिये तक ही रहा
एक किनारे से तुझे
उन सफ़ेद पन्नों को काला, लाल. नीला
करते देखता रहा
सफ़े पे होता तो शायद
तेरी किसी गलती पर
लकीरों के जाल के नीचे
दम तोड़ देता
इस तरह हाशिये से अब मैं
अमिट हो गया हूँ
जब कभी यह किताब अब खुलेगी
मैं इसी किनारे से तुम्हें देखूंगा
और हर बार पन्ना पलटने से पहले
टीस बन तेरे सीने की
आह बन निकलूंगा
हाशिये की ज़िन्दगी से
ज़िन्दगी के हाशिये का सफर
अब तुम्हें मुबारक
मैं इस किताब के रद्दी में
बिकने के बाद भी इस
हाशिये पे तेरी मज़ार की
तरह हमेशा ज़िंदा रहूंगा
Bahut, bahut accha
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