Monday, September 04, 2023

Har ek raah kahin aur jaa niklati thee

वो याद आए तो जी से दुआ निकलती थी 

हर एक ज़ख्म से ठंडी हवा निकलती थी 


तेरी तलाश में क्या क्या न मरहले आए 

हर एक राह कहीं और जा निकलती थी! 


मिला जो साया तो दीवार आ गिरी सर पर

जहां खुला था कोई दर बला निकलती थी 


 Poet unknown 

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