हम कविता वाले लोग हैं,
हम छंदों में बतियाते हैं
मज़दूर का साथ निभाने को
शब्दों के कुदाल उठाते हैं
कंधे से कंधा मिल कर हम
उसका भार उठाते हैं।
भूखों से हमें विशेष लगाव
शब्दों के कौर खिलाते हैं
उनके नाम की कविता लिख कर
पेट अपने भर पाते हैं
हम कविता वाले लोग हैं
हम छंदों में बतियाते हैं
दायित्व कोई नहीं हमारा
केवल अधिकार हमारे हैं
व्यंग्य हमारा साधन है,
बस खुद पर न सह पाते हैं
हम कविता वाले लोग हैं,
हम छंदों में बतियाते हैं
We are the people of poetry
We speak in rhyme scheme
We pick our words to help him
The mason on the street
We stand with him, shoulder to shoulder.
And use our words to clean.
We love the destitute the most
We feed them our verse
And feed off their poverty,
No one is any the worse.
No responsibility, no sirree,
Only rights we claim
Satire is our specialty
But we are not fair game.
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