Monday, January 16, 2017

Book Review: Itvaar Chhota Pad Gaya by Pratap Somvanshi





बड़े दिन बाद, एक ऐसी किताब जिस के हर शेर पर वाह! निकलती है.


कविता, बड़ी अजीब चीज़ होती है. बिलकुल माया के जैसी. जिसे लग जाए, उसे लग ही जाती है. पर आज भी हम ५० साल पुरानी किताबें पढ़ते हैं. इस लिए, जब कोई नयी किताब आती है, तो उस से बड़ी उम्मीदें बंधती हैं. इस बार, एक किताब है जो उन सब उम्मीदों पर  खरी उतरती है. बार बार किताब के पन्ने आँखों में मिश्री घोलते हैं. बार बार मुस्कान स्वयं ही आती है. ऐसी कविता, काम ही पायी जाती है.


ज़रूर पढ़ें.


Poetry is like Maya... once you are in its grasp, you cannot escape. You will always thirst for good poetry. But we still read poetry that is half a century old. So when a new book of poetry is released, one views it with much anticipation. This is that rare book that meets the expectation. On every page, there is a smile. Almost every sher makes you go "Wah!" in your head. This is awesome poetry. Highly recommended.



No comments: