कविता में होते हैं
पंचभूत
कविता का जल
अपनी राह स्वयं ढूंढता
कविता,
किसी भी भाव को भर दे,
चाहे कैसा भी , और कितना भी हो,
उस का आकार ।
कविता का व्योम (अंतरिक्ष)
इस संसार से ऊपर, बहुत दूर ले जाए
अपने पंखों पर बिठा कर
दुनिया अपनी हो न हो
कविता अपनी होती है.
कविता , ज्यूँ वायु
गर्मी में शीतल झोंका
और कभी
ज्यूँ आंधी
तब तक उड़ाए
जब तक "होने " का भ्रम
मिट न जाए ।
और कभी कविता
पृथ्वी की तरह
बनती है सहारा
उठा लेती है
सारा बोझ
अपने शब्दों के कन्धों पर
हल्के हो जाते हैं
हम ।
कभी कविता अग्नि बन
जलाती है
तन मन ,
राख हो जाता है
आस पास का संसार
हम देखते हैं, मूक.
कविता में होते हैं
पंचभूत.
पंचभूत
कविता का जल
अपनी राह स्वयं ढूंढता
कविता,
किसी भी भाव को भर दे,
चाहे कैसा भी , और कितना भी हो,
उस का आकार ।
कविता का व्योम (अंतरिक्ष)
इस संसार से ऊपर, बहुत दूर ले जाए
अपने पंखों पर बिठा कर
दुनिया अपनी हो न हो
कविता अपनी होती है.
कविता , ज्यूँ वायु
गर्मी में शीतल झोंका
और कभी
ज्यूँ आंधी
तब तक उड़ाए
जब तक "होने " का भ्रम
मिट न जाए ।
और कभी कविता
पृथ्वी की तरह
बनती है सहारा
उठा लेती है
सारा बोझ
अपने शब्दों के कन्धों पर
हल्के हो जाते हैं
हम ।
कभी कविता अग्नि बन
जलाती है
तन मन ,
राख हो जाता है
आस पास का संसार
हम देखते हैं, मूक.
कविता में होते हैं
पंचभूत.
4 comments:
और कभी कविता, पृथ्वी सी
देती है आँचल माँ सा
और समा लेती है अपने गर्भ में
एक अनंत, सुखद विश्राम में लीन
मुक्त , विलुप्त हो जाते हैं हम
:)
very nice lines
Onkar sir: thank you!
Post a Comment