वो हमेशा वहीँ दिखती थी। एक पत्थर पर बैठी हुइ. उस के पास की जगह, हमेशा खाली हुआ करती थी . और उस की आँखों में , हमेशा इंतज़ार .
फिर एक दिन, एक अजूबा हुआ .
उस के पास वाली जगह, खाली नहीं थी . वहां कोई बैठा हुआ था.
पर "उस" की जगह खाली थी .
और जो उस के साथ वाली जगह में बैठा था, उस की आँखों में इंतज़ार नहीं था. उस की आँखों में एक खला थी . उन आँखों की खला , जिन्हें अभी मालूम हुआ हो, कि उनके पैरों ने आने में बहुत देर कर दी .
फिर एक दिन, एक अजूबा हुआ .
उस के पास वाली जगह, खाली नहीं थी . वहां कोई बैठा हुआ था.
पर "उस" की जगह खाली थी .
और जो उस के साथ वाली जगह में बैठा था, उस की आँखों में इंतज़ार नहीं था. उस की आँखों में एक खला थी . उन आँखों की खला , जिन्हें अभी मालूम हुआ हो, कि उनके पैरों ने आने में बहुत देर कर दी .
3 comments:
Brief, but good post
awesome
Onkar sir: thank you!
Naaz: :) yeah.. pain is all familiar.
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