from the poem मेरी मिटटी के जाये
हादसों में घिरे लोग
अपने साथ ले आते हैं
दुस्साहस भरी अकड
और थोड़ी सी आग
फिर वो मधम रौशनी में
हादसों की आँखों में आँखें डाल कर
रात भर जागते रहते हैं
हादसों के हुजूम में
हादसों के मुकाबिल
हादसों के खिलाफ
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शकुंतला की अंगूठी वाली मछली को समुद्र ने निगल लिया है
क्या विश्लेषण के पास समुद्र का हल है?
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दिन
दिन
सुनहरे चोले वाला
एक शरारती साधू है
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इस वक़्त जब की
मैं ख्वाहिशों की आखिरी साँसों पर लटकी हूँ
तुम सब आओ
मेरे सीने में से अपने अपने अस्तित्व की
एक एक कील तो खींच दो
मैं विदा होने से पहले
अपनी तकदीर को माफ़ करना चाहती हूँ
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3 comments:
very poignant!!
ALVIDA kehkar jab koi akhon se dur hota hai
akhein roti hai dil majboor hota hai
zubaan kuch keh nahi sakti...
magar dil mein dard jarur hota hai...
there is no yardstick for the limit of happiness or sadness... each one chooses his/her yardstick
CHEERS TO LIFE!!!
Great poems- these and the earlier ones.
Beautiful..
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