Saturday, March 26, 2011

आओ।
तुम नहीं जानते हो
दुनिया है।

बच्चे की तरह
ये मान कर चले हैं हम
की बारह ही रंग होते हैं दुनिया में
पर ये दुनिया है
ये अपने
दूधिया से ले कर स्याह तक
सभी रंग दिखाएगी तुम्हे
और तुम
विस्मित से देखोगे।

पहले नाम देने की चेष्टा भी करो शायद
पर नाम
जल्द ही ख़त्म हो जायेंगे
और रंगों का आपसी फर्क भी।

तब
समभाव
जानोगे तुम
और बुदध के सामान
ज्ञाता होगे।

2 comments:

B said...

i absolutely love this : पहले नाम देने की चेष्टा भी करो शायद
पर नाम
जल्द ही ख़त्म हो जायेंगे
और रंगों का आपसी फर्क भी।

because.... of the word "chesTa.."
yup, it is indeed childlike, and kind of a joke, that we dare/deem it possible to even ever capture it in finite terms.

i like this writing because it kind of capture what cannot be said in words...

How do we know said...

thanks Amu!!!