Each one of these pieces is special. They have all hit me and stayed in the heart ever since. They are repeated often, and perhaps have appeared earlier on this blog.
IMHO, each of these pieces captures an important idea in 2 lines or less.
What do you think? Which one do you like? I like the last one best.
*************
Don’t dismiss a good idea simply because you don’t like the source.
You miss 100% of the shots you never take.
मुन्ह की बात सुने हर कोई,
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ो के बाज़ारों में
खामोशी पहचाने कौन
मेरे हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नही..
भूखे बच्चों की तस्सली के लिये
मा ने फिर पानी पकाया देर तक
कहने वालों का कुछ नही जाता
सहने वाले कमाल करते हैं
कौन ढूंढे जवाब दर्दों के
लोग तो बस सवाल करते हैं
पत्थर हमारे सेहन में आये खुशी हुई,
ग़म तो गया कोई हमें जानता नही.
अब मैं राशन की कतारों में नज़र आता हूँ
अपने खेतों से बिछडने की सज़ा पाता हूं
इतनी महंगाई कि बाज़ार से कुछ लाता हूं
अपने बच्चों में उसे बांटते शर्माता हूँ
देख कर मुल्कों की सरहदें
पंछी उडते रहते हैं
इधर भी इंसान रहते हैं
उधर भी इंसान रहते हैं
खुद को पढती हूं छोड देती हू
एक वर्क़ रोज़ मोड देती हूं
हमें अपने सभी बेसुध करें करते ही चले जायें
मगर सुधियां उमर भर साथ रहने को उतारू हैं
सभी सुख दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जायें
मग़र पीडा उमर भर साथ रहने को उतारू है
तुम्हे मिलें तो इत्तला करना,
सब सुख हुए फरार हमारे
एक अंगूठे ही के कारण
चुकते नही उधार हमारे
दुख की नगरी कौन सी नगरी,
आंसूं की क्या ज़ात
सारे तारे दूर के तारे,
सब के छोटे हाथ..
सब का खुशी से फासला बस एक कदम है
हर घर में बस एक ही कमरा कम है
कुछ तुम्हारे लिये पल्कों में छिपा रखा है
देख लो, और न देखो तो शिकायत भी नहीं
मां मां कह बुलाती आयी थी,
वह मिटटी हाथ में लायी थी,
कुछ मिट्टी खा कर आयी थी,
कुछ मुझे खिलाने लायी थी..
:-)
IMHO, each of these pieces captures an important idea in 2 lines or less.
What do you think? Which one do you like? I like the last one best.
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Don’t dismiss a good idea simply because you don’t like the source.
You miss 100% of the shots you never take.
मुन्ह की बात सुने हर कोई,
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ो के बाज़ारों में
खामोशी पहचाने कौन
मेरे हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नही..
भूखे बच्चों की तस्सली के लिये
मा ने फिर पानी पकाया देर तक
कहने वालों का कुछ नही जाता
सहने वाले कमाल करते हैं
कौन ढूंढे जवाब दर्दों के
लोग तो बस सवाल करते हैं
पत्थर हमारे सेहन में आये खुशी हुई,
ग़म तो गया कोई हमें जानता नही.
अब मैं राशन की कतारों में नज़र आता हूँ
अपने खेतों से बिछडने की सज़ा पाता हूं
इतनी महंगाई कि बाज़ार से कुछ लाता हूं
अपने बच्चों में उसे बांटते शर्माता हूँ
देख कर मुल्कों की सरहदें
पंछी उडते रहते हैं
इधर भी इंसान रहते हैं
उधर भी इंसान रहते हैं
खुद को पढती हूं छोड देती हू
एक वर्क़ रोज़ मोड देती हूं
हमें अपने सभी बेसुध करें करते ही चले जायें
मगर सुधियां उमर भर साथ रहने को उतारू हैं
सभी सुख दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जायें
मग़र पीडा उमर भर साथ रहने को उतारू है
तुम्हे मिलें तो इत्तला करना,
सब सुख हुए फरार हमारे
एक अंगूठे ही के कारण
चुकते नही उधार हमारे
दुख की नगरी कौन सी नगरी,
आंसूं की क्या ज़ात
सारे तारे दूर के तारे,
सब के छोटे हाथ..
सब का खुशी से फासला बस एक कदम है
हर घर में बस एक ही कमरा कम है
कुछ तुम्हारे लिये पल्कों में छिपा रखा है
देख लो, और न देखो तो शिकायत भी नहीं
मां मां कह बुलाती आयी थी,
वह मिटटी हाथ में लायी थी,
कुछ मिट्टी खा कर आयी थी,
कुछ मुझे खिलाने लायी थी..
:-)