इस पुस्तक में कवयित्री के हृदय कि गहरी संवेदनाएँ हैं।
परंतु इस पुस्तक को पाठक से पहले एक संपादक की आवश्यकता है।
पुस्तक में वर्तनी कि त्रुटियाँ हैं। कुछ कविताओं को इसलाह की ज़रूरत है।
जिगांशु शर्मा के मन के भाव कोमल है, अभिव्यक्ति मौलिक है। परंतु एक पुस्तक को इन सब के अलावा, भाषा की शुद्धता का भी ध्यान रखना चाहिए।
हिन्दी और अंग्रेजी की मिली जुली कविताएँ और गीत बहुत समय से लोक संस्कृति का हिस्सा बने हुए हैं, और उन्हें बनना भी चाहिए क्यूंकि हमारी संस्कृति अब सच में द्विभाषी है। ऐसी ही कुछ कविताएँ इस पुस्तक में भी हैं।
कविताओं में हालांकि नया विचार देखने को नहीं मिलता, परंतु विचार की अभिव्यक्ति किसी से चुराई नहीं गई - कवि की आवाज उनकी अपनी है, अंदाज़ उनका अपना।
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