छोटी छोटी कविताएँ, और हर कविता में इतनी तृष्णा, इतना प्रेम।
कविता प्रेम के जैसी होनी चाहिए - बहुत गहरी, पर देखने में बहुत सादा सी।
हर कविता प्रेम कविता है, हर कविता प्रेम के जैसी ही है - सादा से शब्दों में, गहरे-गहरे जज़्बात।
काश कभी यूं हो कि
तुम हो जाओ पूरी की पूरी मेरी
जैसे
गंगा बनारस की है!
मैं हो जाना चाहता हूँ
बंजारा फकीर
क्या कभी यूं होगा कि
तुम बन जाओ
मेरे कांधे की झोली
जो भरा रहता है मुफलिसी में भी
मन की संतुष्टि जितना
कभी यूं भी तो हो कि
मुझे छेड़ने के मन से
तुम कह दो ...
"मैं जा रही हूँ,
फिर कभी नहीं आऊँगी"
और, चुपके से देख पाओ
मेरा खुद से
तुम से पहले गायब हो जाना
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