"सुबह उठेगा, तब क्या होगा?"
"तब तक तो हम बहुत दूर निकल गई होंगी"
"पर किसी का कोई सिर, आँचल, कुछ पकड़ लिया तो? वह छूट न पाएगी!"
"एक-आधे अंग से, मूरत बनती है क्या? हम सब आज़ाद हैं, आज़ाद ही रहेंगी!"
"और वो कल फिर हमें बांध लाया तो?"
"इतना जतन करने जोग होता, तो रात में ही न बांध लेता? चलो, चलो, डरने की कुछ बात नहीं है। "
- कविता की वे पंक्तियाँ
जिन्हें रात को दिमाग में रखा था,
सुबह कागज़ के हवाले करने को
*This post is inspired by a poem by Rohit Shrivastava
 
 
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