Saturday, March 04, 2023

Book Review: Raat Ke Kinaaron Par by Sandeep Gaur/ पुस्तक समीक्षा - रात के किनारों पर / संदीप गौड़

जब कोई 30 साल से कविता पढ़ रहा हो, तो कविता में नवीन अभिव्यक्ति और नया विचार, दोनों दुर्लभ होते जाते हैं। 
इसी लिए, जब कोई पुस्तक स्वत: ही हर कविता पर "वाह!" निकाले, तो उसकी समीक्षा करना लाजिमी हो जाता है। 

आश्चर्य इस संग्रह में से  मेरी सब से पसंदीदा कविता है। 

कविताएँ इतनी छोटी हैं कि कोई भी कविता एक पन्ने से ऊपर की नहीं है। 

कुछ कविताएँ, जो इस पुस्तक का प्रतिनिधित्व करती हैं: 


माँ पर जब भी 
हाथ उठता था पिताजी का 

वो रसोई घर में जा कर 
काटने लगती थी प्याज़ 
**************** 
सच 

पूछना है तो पूछो 
चप्पलों से 
उसके सफर की दास्तान 

मंजिल पर पहुँचकर 
लोग अक्सर 
झूठ ही बोला करते हैं 
**************** 

और मेरी पसंदीदा: 

आश्चर्य 

बाद बरसों मिले हो तुम 
वैसे ही हो आज भी 
जैसे बरसों पहले थे 

या तो तुमने दुनिया नहीं देखी 
या दुनिया ने तुमको नहीं देखा 
************* 

No comments: