बचपन में हर बच्चे के पास एक सन्दूकची या बिस्कुट का पुराना डिब्बा होता है, जिस में वह अपना सारा संसार सँजो कर रखता या रखती है। 2 मिनट भी खाली मिलने पर मन उस सन्दूकची के पास भाग जाने को करता है। एक एक चीज उठा कर देखना, उसे बस छू भर कर वापिस रख देना - मन को उस समय जो संतोष मिलता है, वह फिर बड़े होने पर नहीं मिलता।
इस पुस्तक के साथ, मन ने, बहुत सालों बाद, फिर उसी संतोष को पाया। 5 मिनट भी मिलने पर, किताब को उठा कर पढ़ने बैठ जाना, बिल्कुल वैसा ही महसूस होता था, जैसा बचपन की सन्दूकची को चुपके से खोलने पर।
एक-एक कहानी उम्दा। कोई कथानक ऐसा नहीं जिसका अनुमान पढ़ते हुए लगाया जा सके। विषय कुछ ऐसे, जिनके बारे में अमूमन बात नहीं होती, पर उनकी handling ऐसी कि बिल्कुल भी असहज न लगे।
मेरी पसंदीदा कहानी 'उस पल' है, एक बेहद व्यक्तिगत कारण से। पर इस पुस्तक की सभी कहानियाँ अपनी बात कहती है। और वह बात सुनने योग्य है।
जब आप किसी पहाड़ पर या समंदर के किनारे यूं ही वक़्त गुजार रहे हों, और कोई साथी चाहिए हो, जो अच्छी, रोचक बातें करे, तब इस किताब को उठाइएगा।
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