Saturday, November 14, 2020

With apologies to Neruda ji

 Someone posted this snippet of a poem by Pablo Neruda, translated in Hindi: 

अंधेरे के कुएँ में गिर गई है रोशनी।

ज़रूरत है कि हम कुएँ की जगत पर बैठ,

ध्यान से निकालें गिरी हुई रोशनी को, 

बेहद सब्र से जैसे पकड़ते हैं मछलियाँ।


- पाब्लो नेरूदा, अनुवाद : गीत चतुर्वेदी

On a Diwali morning, one does not like to think of light as a fugitive, furtively hiding in the depths of a well. So, my humble response, with due apologies to Neruda ji: 

Punjabi Original: 

ਰੋਸ਼ਨੀ

ਖੂ ਦੀ ਮੱਛੀ ਨਹੀਂ ਸੱਜਣਾ

ਧਰਤੀ ਦੇ ਸੀਨੇ ਦਾ ਲਹੂ ਹੈ

ਆਇਣੁ ਜਾਲੇ ਨਾਲ ਨਹੀਂ

ਜਿਗਰੇ ਨਾਲ ਫੜੀਦਾ ਹੈ

Roshni

Khoo di machhli nahi sajjna

Dhartee de seene da lahoo hai

Ainu jaale naal nahi

Jigre naal PhaDeeda hai

Hindi translation: 

रोशनी

कुंवे में मछलियों की तरह नहीं

धरती में लावे की तरह रहती है

उसे पकड़ने के लिए

जाल नहीं

जिगर चाहिए।



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