एक बात है, जो मन बुद्धिजीवी कवियों से कहना चाहता तो है, पर कह नहीं पाता। इसी कारण, कविता ग्रुप्स में जब भूख, बेरोजगारी, नफरत आदि पर कविता सांझी की जाती है, तो मन बोझल हो जाता है। कुछ न करके बहुत कुछ कहना भी एक कला ही है।
इसी लिए ये कविता बहुत अच्छी लगी। प्यारे अवसादी कवियों, यह पढ़ो:
https://poetmishraji.blogspot.com/2020/11/blog-post_9.html
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