जितना मुझे क्षणिकाओं से प्रेम है, जीवन का सार एक क्षणिका में ही मिलना था.
किसी और की लिखी हुई है. किसने लिखी है, इस पर इंटरनेट एकमत नहीं हो पा रहा है. तो पता नहीं किसने लिखी है.
************
सूखे पत्तों की सिम्त बिखरे हुए थे हम
एक शख्स ने समेटा
और आग लगा दी.
**********
No comments:
Post a Comment