Sunday, October 06, 2024

कविता की ज़िद

वो जो छींक 

आधे में रुक जाती है न? 

जिसके आ जाने तक 

सांस रोकने के अलावा कुछ नहीं कर सकते? 

पूरे अधिकार से 

रोक देती है 

जो भी ज़रूरी काज या बात 

कर रहे हों। 

सर्वाधिकार संपूर्णतया सुरक्षित। 


कुछ कविताओं का मन में आना भी 

ऐसा ही है। 


You know that sneeze 

that stops midway

just to demand 

complete attention? 

Where you have to stop doing

or saying 

Whatever it is that you were

saying or doing? 


Yeah, some poems 

come to the head 

in the same way. 



2 comments:

Anita said...

सही है, कविता अपनी मर्ज़ी से आती है

How do we know said...

Ji :)